Monday 17 February 2014

दर्द सहा नहीं जाता


दर्द तो होता है मगर सहा नहीं जाता
तू सामने भी है मगर कहा नहीं जाता

जब से दोस्ती पत्थरों से की मैंने
शीशे के मकां में मुझसे रहा नहीं जाता

जिंदगी जहर ही सही मगर पिया नहीं जाता
जीते थे पहले भी तेरे बिन अब रहा नहीं जाता

राहों में मिल गए तो समझा हमसफ़र तुझे
चल तो दिए मगर मंजिल नज़र नहीं आता

सुकूं की तलाश में कहाँ कहाँ ढूँढा तुझे
बेताब मेरा दिल मगर वहां नहीं जाता

तू आ के थाम ले मेरे हाथों को
दर्दे दिल का मगर सहा नहीं जाता

ले चल मुझे ख्वाबों के उस गाँव
जुदाई का साया जहाँ नहीं जाता 
    

39 comments:

  1. पत्थरों से दोस्ती हो तो शीशे की मकान में रहा भी कैसे जाए !
    बेहतरीन ग़ज़ल !

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  2. बहुत ही बेहतरीन गजल है राजीव जी..
    बढियां...
    :-)

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  3. बेचैनी का आलम- सुंदर रचना.

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  4. बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय-

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (18-02-2014) को "अक्ल का बंद हुआ दरवाज़ा" (चर्चा मंच-1527) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...

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  7. जब से दोस्ती पत्थरों से की मैंने
    शीशे के मकां में मुझसे रहा नहीं जाता
    बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति.....

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  8. जब से दोस्ती पत्थरों से की मैंने
    शीशे के मकां में मुझसे रहा नहीं जाता


    ले चल मुझे ख्वाबों के उस गाँव
    जुदाई का साया जहाँ नहीं जाता

    ले चल मुझे सहारा देकर मेरे नाविक धीरे धीरे। ... बेहद सुन्दर गज़ल हर शैर काबिले दाद

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  9. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ....

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  10. जब से दोस्ती पत्थरों से की मैंने
    शीशे के मकां में मुझसे रहा नहीं जाता

    बहुत खूब
    सुन्दर गजल !

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  11. बहुत ही बेहतरीन गजल है राजीव जी,धन्यवाद.

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    1. सादर धन्यवाद ! राजेंद्र जी. आभार.

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  12. राजीव भाई , बहुत ही सुंदर , धन्यवाद
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    Replies
    1. सादर धन्यवाद ! आशीष भाई. आभार.

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  13. जिंदगी जहर ही सही मगर पिया नहीं जाता
    जीते थे पहले भी तेरे बिन अब रहा नहीं जाता ..
    प्रेम जब हद से ज्यादा होता है ऐसा ही होता है ... हर शेर लाजवाब है इस गजाल का ...

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  14. सादर धन्यवाद ! आभार.

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  15. भावपूर्ण अभिव्यक्ति |

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  16. ले चल मुझे ख्वाबों के उस गाँव
    जुदाई का साया जहाँ नहीं जाता
    ....................बेहतरीन गजल है राजीव जी..

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  17. ले चल मुझे ख्वाबों के उस गाँव
    जुदाई का साया जहाँ नहीं जाता

    ले चल मुझे भुलावा देकर मेरे नाविक धीरे धीरे !सुन्दर अति सुन्दर बिम्ब।

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  18. सुंदर प्रस्तुति..!

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  19. जब से दोस्ती पत्थरों से की मैंने
    शीशे के मकां में मुझसे रहा नहीं जाता
    गज़ब के अल्फाज लिखे हैं आपने श्री राजीव जी

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