संकेत अमलतास के
लौट आए टहनियों के
लालनीले
पंख वाले दिन
मन पलाशों
के खिले हैं
हर घड़ी-पल-छिन
अंग फिर खुलने लगे हैं
फागुनी लिबास के
अधर गुनगुना उठे,ह्रदय में
सुमन खिले हैं आस के
रंग रंगीले दिन आये हैं
मधुर हास-परिहास के
कौन पखेरू धुन मीठी यह
घोल गया है कान में
मन वीणा पर गीत प्रणय के
छिड़े सुरीली तान में |
Monday 24 February 2014
मन पलाशों के खिले हैं
Monday 17 February 2014
दर्द सहा नहीं जाता
तू सामने भी है मगर कहा
नहीं जाता
जब से दोस्ती पत्थरों से की मैंने
शीशे के मकां में मुझसे रहा नहीं जाता
जिंदगी जहर ही सही मगर पिया नहीं जाता
जीते थे पहले भी तेरे बिन अब रहा नहीं जाता
राहों में मिल गए तो समझा हमसफ़र तुझे
चल तो दिए मगर मंजिल नज़र नहीं आता
सुकूं की तलाश में कहाँ कहाँ ढूँढा तुझे
बेताब मेरा दिल मगर वहां
नहीं जाता
तू आ के थाम ले मेरे हाथों को
दर्दे दिल का मगर सहा
नहीं जाता
ले चल मुझे ख्वाबों के उस गाँव |
Monday 10 February 2014
फागुन की धूप
आँगन में पसरी है फागुन की धूप मौसम की महक हुई कितनी अनूप बिंब लगे बनने कितने रंगों में उतरने लगी उमंग तन के अंगों में भर उठे आशा से मन के सब कूप बस गया यौवन पेड़ों की शाखों पर उतरा है पराग मस्त फूलों की शाखों पर आँखों में थिरकते सपनों के सूप कांपते लबों पर मीठे संबोधन दौड़ गई नसनस में मीठी सिहरन चेहरे पर उतरा है सोने सा रूप |
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