Monday 24 February 2014

मन पलाशों के खिले हैं

नेह के रथ से मिले
संकेत अमलतास के
लौट आए टहनियों के
लालनीले
पंख वाले दिन

मन पलाशों
के खिले हैं
हर घड़ी-पल-छिन
अंग फिर खुलने लगे हैं
फागुनी लिबास के

अधर गुनगुना उठे,ह्रदय में
सुमन खिले हैं आस के
रंग रंगीले दिन आये हैं
मधुर हास-परिहास के

कौन पखेरू धुन मीठी यह
घोल गया है कान में
मन वीणा पर गीत प्रणय के
छिड़े सुरीली तान में   
    

Monday 17 February 2014

दर्द सहा नहीं जाता


दर्द तो होता है मगर सहा नहीं जाता
तू सामने भी है मगर कहा नहीं जाता

जब से दोस्ती पत्थरों से की मैंने
शीशे के मकां में मुझसे रहा नहीं जाता

जिंदगी जहर ही सही मगर पिया नहीं जाता
जीते थे पहले भी तेरे बिन अब रहा नहीं जाता

राहों में मिल गए तो समझा हमसफ़र तुझे
चल तो दिए मगर मंजिल नज़र नहीं आता

सुकूं की तलाश में कहाँ कहाँ ढूँढा तुझे
बेताब मेरा दिल मगर वहां नहीं जाता

तू आ के थाम ले मेरे हाथों को
दर्दे दिल का मगर सहा नहीं जाता

ले चल मुझे ख्वाबों के उस गाँव
जुदाई का साया जहाँ नहीं जाता 
    

Monday 10 February 2014

फागुन की धूप


आँगन में पसरी है 
फागुन की धूप
मौसम की महक हुई 
कितनी अनूप 

बिंब लगे बनने

कितने रंगों में 
उतरने लगी उमंग 
तन के अंगों में 

भर उठे आशा से 

मन के सब कूप 

बस गया यौवन 

पेड़ों की शाखों पर 
उतरा है पराग मस्त   
फूलों की शाखों पर 

आँखों में थिरकते

सपनों के सूप 

कांपते लबों पर 

मीठे संबोधन 
दौड़ गई नसनस में 
मीठी सिहरन 

चेहरे पर उतरा है 

सोने सा रूप  


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