दूर गगन का कोई अंत नहीं है मन प्रफुल्लित न हो तो बसंत नहीं है जीवन के सफ़र में कांटे भी मिलेंगे कुछ जख्मों से जीवन का अंत नहीं है मन के भावों को गर समझ पाए कोई गम एक भी हो तो खुशियाँ अनंत नहीं है टूटते हैं मूल्य स्वार्थ भरी दुनियां में कैसे कहें अब कोई संत नहीं है वक्त के साथ न बदल पाए 'राजीव' आदमी है आम कोई महंत नहीं है |
यूं ही कभी
दिल के जजबात
Thursday, 1 March 2018
गगन का अंत नहीं है
Friday, 7 July 2017
तूफ़ान कम नहीं गुजरे
आबाद रहे बियाबान नहीं गुजरे
कोई उसे गूंगा बनाए लिए चलता है
इंसान का ये अपमान नहीं गुजरे
दिवास्वप्न दिखाने वाले कम तो नहीं
पतझड़ में वसंत का अवसान नहीं गुजरे
लहरों से क्या हिसाब मांगने निकले
डूबे हैं तट पर अपमान नहीं गुजरे
फरेबी चालों में नहीं उलझे 'राजीव'
कोई अभिमन्यु चक्रव्यूह से नहीं गुजरे |
Monday, 3 October 2016
Sunday, 25 September 2016
वक्त का मौसम
होठों की हंसी देखे अंदर
नहीं देखा करते
किसी के गम का समंदर नहीं
देखा करते
कितनी हसीन है दुनियां लोग
कहा करते हैं
मर-मरके जीने वालों का मंजर
नहीं देखा करते
पास होकर भी दूर हैं उन्हें
छू नहीं सकते
बिगड़े मुकद्दर की नहीं
शिकवा करते
शीशे का मकां तो खूब मिला
करते हैं
समय के हाथ में पत्थर नहीं
देखा करते
‘राजीव’ देखा है वक्त का
मौसम खूब बदलते
नादां है जो वक्त के साथ
नहीं चला करते |
Friday, 3 June 2016
हजारों गम हैं
एक नहीं हजारों गम हैं किस
किसको कहेंगे
पहले भी हजारों सहे हैं इस
बार भी सहेंगे
जमाने के साथ कदम मिलाकर न
चल पाए
दोष खुद का हो तो औरों को
क्या कहेंगे
हथेली से रेत की मानिंद
फिसलती जाए है
जिंदगी क्या इस तरह गुजर न जाएंगे
तुम नहीं हम अकेले और बहती
दरिया है
सुनसान गीतों के छंद किनारे
पहुँच पाएंगे
‘राजीव’ फ़कत चुपचाप हैं पेड़
पत्ते बोलते हैं
दर्दे दिल की शमा आँधियों
से न बुझ जाएंगे |
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