मुद्दत से इक ख्याल दिल में
समाया है
धरती से दूर आसमां में घर
बनाया है
मोह-माया,ईर्ष्या-द्वेष
इंसानी फितरतें हैं
इनसे दूर इंसान कहाँ मिलते
हैं
बड़ी मुश्किल से इनसे निजात
पाया है
परिंदों की तरह आसमां में घर
बनाया है
साथ चलेंगी दूर तक ये हसरत
थी
आंख खुली तो देखा अपना साया
है
‘राजीव’ उन्मुक्त जीवन की
लालसा रखे
आसमां वालों ने जबसे हमसफ़र
बनाया है |
Saturday, 28 November 2015
इक ख्याल दिल में समाया है
Tuesday, 10 November 2015
Tuesday, 3 November 2015
दास्तां सुनाता है मुझे
जब कभी सपनों में वो बुलाता
है मुझे
बीते लम्हों की दास्तां
सुनाता है मुझे
इंसानी जूनून का एक पैगाम
लिए
बंद दरवाजों के पार दिखाता है
मुझे
नफरत,द्वेष,ईर्ष्या की कोई
झलक नहीं
ये कौन सी जहां में ले जाता
है मुझे
मेरे इख्तयार में क्या-क्या
नहीं होता
बिगड़े मुकद्दर की याद
दिलाता है मुझे
रुक-रुक कर आती दरवाजे से
दस्तक
ये मिरा वहम है या कोई बुलाता है
मुझे
उसको भी मुहब्बत है यकीं है मुझको
उसके मिलने का अंदाज बताता है मुझे'राजीव’ तुम बिन बीता अनगिनत पल |
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