संकेत अमलतास के
लौट आए टहनियों के
लालनीले
पंख वाले दिन
मन पलाशों
के खिले हैं
हर घड़ी-पल-छिन
अंग फिर खुलने लगे हैं
फागुनी लिबास के
अधर गुनगुना उठे,ह्रदय में
सुमन खिले हैं आस के
रंग रंगीले दिन आये हैं
मधुर हास-परिहास के
कौन पखेरू धुन मीठी यह
घोल गया है कान में
मन वीणा पर गीत प्रणय के
छिड़े सुरीली तान में |
मौसम का असर हर शै पर है. सुंदर रचना .
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Delete...bahut sunder!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deletebahut sundar rachana ..
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteकौन पखेरू धुन मीठी यह
ReplyDeleteघोल गया है कान में....
manbhaawan post hai aapka....
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteक्या बात है दोस्त अतिसुन्दर प्रतीक धूप आपके जीवन में खिले खिलती रहे।
ReplyDeleteबेहद सांगीतिक रचना रूपक परिधान पहने हुए।
नेह के रथ से मिले
संकेत अमलतास के
लौट आए टहनियों के
लालनीले
पंख वाले दिन
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteस्वागत है , सुन्दर शब्दों का
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! योगी जी. आभार.
Deleteशब्दों के पलाश तो खिल रहे हैं ... मस्त गीत है ...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति |मौसम के अनुकूल |
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteऐसा लग रहा है पूरा मौसम आपकी इन सुन्दर पंक्तियों में पसर गया है!! बहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (25-02-2014) को "मुझे जाने दो" (चर्चा मंच-1534) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteवाह !
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत सुंदर रचना..
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteमौसम को समेटते हुए आपके शब्दों की मोती ,सुन्दर
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत सुंदर...!!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteमन पलाशों
ReplyDeleteके खिले हैं
हर घड़ी-पल-छिन
अंग फिर खुलने लगे हैं
फागुनी लिबास के
बहुत कोमल पदावली सुन्दर प्रस्तुति।
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteखुशनुमा अहसास...फागुन के सारे रंग उतर आए हैं आपकी इस रचना में...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteवाह बहुत सुन्दर सरस मनोहारी कविता लिखी है , बधाई आपको
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteमन को दुलराती भाषा का अप्रतिम सौंदर्य लिए है ये लयताल का पैटर्न लिए छांदिक रचना।
ReplyDeleteसादर प्रणाम!
ReplyDelete............बहुत ही सुन्दर रचना.......................फूलों सी नाजुक
सादर धन्यवाद ! अनिल जी. आभार.
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteआपकी निरंतर प्रेरक उत्प्रेरक अर्थ गर्भित टिपण्णियों के लिए आपका आभार।
ReplyDeleteफगुआ के आने का संकेत कवि अक्सर अपनी कविताओं और भावों के माध्यम से कर ही देते हैं. बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteमन पलाशों
ReplyDeleteके खिले हैं
हर घड़ी-पल-छिन
अंग फिर खुलने लगे हैं
फागुनी लिबास के
क्या खूब लिखते हैं आप.
your post is so amazing and informative .you are always write your in the meaningful and explaining way.
ReplyDeletenimbu ke fayde