Saturday, 28 November 2015

इक ख्याल दिल में समाया है

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मुद्दत से इक ख्याल दिल में समाया है
धरती से दूर आसमां में घर बनाया है

मोह-माया,ईर्ष्या-द्वेष इंसानी फितरतें हैं
इनसे दूर इंसान कहाँ मिलते हैं

बड़ी मुश्किल से इनसे निजात पाया है
परिंदों की तरह आसमां में घर बनाया है

साथ चलेंगी दूर तक ये हसरत थी
आंख खुली तो देखा अपना साया है

‘राजीव’ उन्मुक्त जीवन की लालसा रखे
आसमां वालों ने जबसे हमसफ़र बनाया है 
    

16 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (29-11-2015) को "मैला हुआ है आवरण" (चर्चा-अंक 2175) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अमर शहीद संदीप उन्नीकृष्णन का ७ वां बलिदान दिवस , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. बहुत बढ़िया

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  4. बहुत खूब। शानदार रचना।

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  5. वाह। बहुत ख़ूब।

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  6. वाह। बहुत ख़ूब।

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  7. बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना की प्रस्तुति।

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  8. बहुत सुंदर । सच है आप की रचना ।

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  9. आप सदा उन्मुक्त ही महसूस करें , मंगलकामनाएं आपको !

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  10. सुन्दर शब्द रचना

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