बंद होठों के कोरों से
मुस्कुराए तो सही
खामोशी से जो बात न बन पाए
थोड़ा कह कर बहुत कुछ कह जाए
तो सही
जीने का उल्लास रजनीगंधा सी
महक उठती हैं
मन का संताप खुद ही बह जाए
तो सही
सपनों में पलाश के रंग भर
उठते हैं
मुद्दत बाद जो उनसे मिल
पाए तो सही
जीने की वजह फिर बन जाए
‘राजीव’
भूला हुआ परिचय जो मिल पाए
तो सही
|
---|
Saturday, 26 September 2015
जुबां पर आए तो सही
Tuesday, 8 September 2015
दिन कितने हैं बीत गए
दिन कितने हैं बीत गए
याद है वो हंसी-ठिठोली
करूं प्रतीक्षा बैठी कब से
साथ चलूंगी लाओ डोली |
दिन कितने हैं बीत गए
रुके नहीं हैं आंसू झरते
आज ह्रदय के दीपक जलते
आज मना लूं तुम संग होली |
दिन कितने हैं बीत गए
फिर ह्रदय में हलचल मचते
संभल नहीं पाता एकाकीपन
आज सुनूं जो प्रणय की बोली |
करूं प्रतीक्षा बैठी कब से
साथ चलूंगी लाओ डोली ||
|
---|
Subscribe to:
Posts (Atom)