बंद होठों के कोरों से
मुस्कुराए तो सही
खामोशी से जो बात न बन पाए
थोड़ा कह कर बहुत कुछ कह जाए
तो सही
जीने का उल्लास रजनीगंधा सी
महक उठती हैं
मन का संताप खुद ही बह जाए
तो सही
सपनों में पलाश के रंग भर
उठते हैं
मुद्दत बाद जो उनसे मिल
पाए तो सही
जीने की वजह फिर बन जाए
‘राजीव’
भूला हुआ परिचय जो मिल पाए
तो सही
|
---|
Saturday, 26 September 2015
जुबां पर आए तो सही
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Sunder Kavita!
ReplyDeleteबहुत खूब श्री राजीव झा जी ! शानदार अलफ़ाज़
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeletesundar kavita!
ReplyDeleteउम्दा रचना
ReplyDeleteजीने की वजह फिर बन जाए ‘राजीव’
ReplyDeleteभूला हुआ परिचय जो मिल पाए तो सही
.....जीने के लिए कोई खूबसूरत बहाना जरुरी जाती हैं ....
...खूबसूरत ख्याल है ...
behtareen.......
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (27-09-2015) को "सीहोर के सिध्द चिंतामन गणेश" (चर्चा अंक-2111) (चर्चा अंक-2109) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार.
Deleteबहुत ही अच्छी रचना।
ReplyDelete
ReplyDeleteजीने की वजह फिर बन जाए ‘राजीव’
भूला हुआ परिचय जो मिल पाए तो सही ..
जीने की वजह मिल सके तो बात ही क्या है ... बहुत लाजवाब शेर हैं इस ग़ज़ल के ...
जीने की वजह फिर बन जाए ‘राजीव’
ReplyDeleteभूला हुआ परिचय जो मिल पाए तो सही ..
काबिले तारीफ़ बहुत खूबसूरत ग़ज़ल.
सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता है| ऐसी कवितायेँ साहित्य की गहरी समझ के बिना नहीं लिखी जा सकती हैं| इस सुन्दर कविता के लिए आपको बहुत बहुत बधाई|
ReplyDeleteधन्यवाद,
अविनाश चौहान
http://arohihindi.com/