Friday, 5 February 2016

घिर आए हैं ख्वाब





घिर आए हैं
ख्वाब फिर
उनींदी पलकों में

फागुनी खुशबुओं में लिपटी
इन हंसी ख्वाबों से
रेशमी चुनर बुन
पहना दूं क्या ?

धरती से आकाश तक
सज गई है
किरणों की महफ़िल
बज उठता है मधुर संगीत

चांदनी रातों के
मोरपंखी ख्वाबों से
जुड़ जाता है
प्रीत का रीत 



20 comments:

  1. bahut khoob :-)

    Cheers, Archana - www.drishti.co

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  2. अति सुन्दर .. मौसम प्रेम के असर को बढ़ा देता है ... नए ख्वाब सजने लगते हैं ...

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (06-02-2016) को "घिर आए हैं ख्वाब" (चर्चा अंक-2244) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " भारत और महाभारत - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. Very nice poem... :) Loved the last stanza

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  6. बहुत ही प्यारी रचना। बहुत ही करीने से शब्दों को पिरोया गया है।

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  7. सार्थक व प्रशंसनीय रचना...
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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  8. beautiful peotic xplanation...loved it!

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  9. बेहद सुंदर ।

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  10. शानदार पोस्ट …. sundar prastuti … Thanks for sharing this!! �� ��

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