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होठों की हंसी देखे अंदर
नहीं देखा करते  
किसी के गम का समंदर नहीं
देखा करते  
कितनी हसीन है दुनियां लोग
कहा करते हैं  
मर-मरके जीने वालों का मंजर
नहीं देखा करते  
पास होकर भी दूर हैं उन्हें
छू नहीं सकते  
बिगड़े मुकद्दर की नहीं
शिकवा करते  
शीशे का मकां तो खूब मिला
करते हैं  
समय के हाथ में पत्थर नहीं
देखा करते  
‘राजीव’ देखा है वक्त का
मौसम खूब बदलते नादां है जो वक्त के साथ
नहीं चला करते | 
 
बहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteवाह सुन्दर ।
ReplyDeleteकमाल की गजल है!
ReplyDeleteकमाल की गजल है!
ReplyDeleteBeautiful.
ReplyDeleteआहा , क्या बात क्या बात ..बहुत ही उम्दा ..बांचते जाइए हम लोग गुनने को तैयार बैठे हैं ..उकेरते जाइए | सुन्दर
ReplyDelete‘राजीव’ देखा है वक्त का मौसम खूब बदलते
ReplyDeleteनादां है जो वक्त के साथ नहीं चला करते
,..बहुत सुन्दर . सच वक्त के साथ नहीं चले तो पीछे कोई नहीं देखने वाला मिलता है
अच्छी है!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .....
ReplyDeleteBahut badhiya!
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ
ReplyDeleteअरे वाह क्या बात है बहुत ही उम्दा राजीव जी
ReplyDeleteपत्थर होते हैं हाथों में इसलिए काँच के घर तो नहीं छोड़ा करते ...
ReplyDeleteबहुत खूब शेर हैं ...
शीशे का मकां तो खूब मिला करते हैं
ReplyDeleteसमय के हाथ में पत्थर नहीं देखा करते
बहुत खूब राजीव जी ! शानदार अल्फ़ाज़