क्या पता कैसी खुमारी
आज पलकों में समाई
मोहिनी उषा कपोलों में
संवर के मुस्कुरायी
पवन चल परदेश से
प्रिय की पदचाप लायी
थाम लो उर हर्ष विह्वल
मधुनिशा फिर संग लायी
करवटें लेने लगीं
फिर कल्पनाएं
जन्म लेने लग गयी
फिर कोई कहानी
यादों की हरीतिमा
मधुर स्मृति बन
बंद होठों में
नगमा बन गुनगुनायी
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प्रकृति और स्मृति का सुन्दर मेल....
ReplyDeleteBehat sundar rachna :)
ReplyDeleteप्रेम और प्राकृति का समन्वय ... सुन्दर रचना है ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteभारतीय नववर्ष एवं नवरात्रों की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (23-03-2015) को "नवजीवन का सन्देश नवसंवत्सर" (चर्चा - 1926) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार.
Deleteयादों की हरीतिमा
ReplyDeleteमधुर स्मृति बन
बंद होठों में
नगमा बन गुनगुनायी
...बहुत सुन्दर
बहुत बढियाँ
ReplyDeleteबहुत खूब, मंगलकामनाएं आपको !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना...वासन्तिक नवरात्र की शुभकामनाएँ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteसाईं क्या है ?
मनोहर गीत।
ReplyDeleteसुन्दर रचना , मंगलकामनाएं आपको !
ReplyDeleteपवन चल परदेश से
ReplyDeleteप्रिय की पदचाप लायी
वाह एक नये रूप में शब्दों का सुन्दर प्रयोग.
बधाई