Sunday, 22 March 2015

फिर कोई कहानी


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क्या पता कैसी खुमारी
आज पलकों में समाई
मोहिनी उषा कपोलों में
संवर के मुस्कुरायी

पवन चल परदेश से
प्रिय की पदचाप लायी
थाम लो उर हर्ष विह्वल
मधुनिशा फिर संग लायी

करवटें लेने लगीं
फिर कल्पनाएं
जन्म लेने लग गयी
फिर कोई कहानी

यादों की हरीतिमा
मधुर स्मृति बन  
बंद होठों में
नगमा बन गुनगुनायी 
    

14 comments:

  1. प्रकृति और स्मृति का सुन्दर मेल....

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  2. प्रेम और प्राकृति का समन्वय ... सुन्दर रचना है ...

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति...

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  4. भारतीय नववर्ष एवं नवरात्रों की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (23-03-2015) को "नवजीवन का सन्देश नवसंवत्सर" (चर्चा - 1926) पर भी होगी!
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. यादों की हरीतिमा
    मधुर स्मृति बन
    बंद होठों में
    नगमा बन गुनगुनायी
    ...बहुत सुन्दर

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  6. बहुत बढियाँ

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  7. बहुत खूब, मंगलकामनाएं आपको !!

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  8. बहुत सुंदर रचना...वासन्तिक नवरात्र की शुभकामनाएँ

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  9. सुन्दर रचना , मंगलकामनाएं आपको !

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  10. पवन चल परदेश से
    प्रिय की पदचाप लायी

    वाह एक नये रूप में शब्दों का सुन्दर प्रयोग.
    बधाई

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