शरद ऋतु में हर साल हजारों ,लाखों की संख्या में साईबेरियाई प्रवासी पक्षी
लाखों मील की दूरी तय कर भारत और अन्य एशियाई देशों में आते हैं .
शरद ऋतु की समाप्ति के पश्चात् क्या सभी वापस लौट पाते हैं ?
कुछ भटक जाते हैं ,तो कुछ अपनों से फिर नहीं मिल पाते .
कितने उसके साथी छूटे जो छूट गए फिर कहाँ मिले पर इन बिछड़ों पर कब अपना शोक मनाता है
(बच्चन जी की कविता के तर्ज पर)
फिर आ गई है बरसात
तुम न आए
आती रही तुम्हारी याद
तुम न आए
छा रही काली घटा चपला चमकती काश ! तुम होते यहाँ पर बाजुओं में तुम्हारी आ सिमटती रह गया रोकर ह्रदय आँखें न रोई बीती यादों में तुम्हारे न जाने कब से खोई हुई मूक वाणी दर्द गहरा गया पूछती हूँ आप अपने से क्या प्रिय प्रवासी बिसरा गया ? |
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Friday, 11 October 2013
प्रिय प्रवासी बिसरा गया
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ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया रचना
सादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteबहुत ही बढ़िया रचना राजीव जी।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! मनोज जी . आभार .
Deleteशब्दों में एक प्रवासी का दुःख दिखता है ...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteबहुत सुंदर ,प्रवासी के दर्द को शब्दों में सही उकेरा है .
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteबहुत ही बढ़िया रचना .
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteबहुत बढ़िया रचना
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteप्रेम और फिर विरह ही ऐसी सोच उपजाता है। बहुत प्यारी रचना।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteसादर धन्यवाद ! आभार .
ReplyDeleteसुब्दर भावपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! नासवा जी. आभार .
Deletebahut sundar rachna
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! उपासना जी. आभार
Deleteबहुत उत्तम प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! नीरज जी . आभार .
Deleteकोमल भावों की उत्कृष्ट प्रस्तुति ! बहुत सुंदर रचना !
ReplyDeleteक्या बात है इन्हें ही कहतें हैं हंसगुल्ले व्यंग्य विनोद के।
ReplyDeleteक्या बात है प्रवासी के गीतों से पीर पक्षी जगत से तदानुभूति।
सादर धन्यवाद ! आ. वीरेन्द्र जी . आभार.
Deleteहुई मूक वाणी
ReplyDeleteदर्द गहरा गया
पूछती हूँ आप अपने से
क्या प्रिय प्रवासी बिसरा गया ?... bahut khoob raajeev ji, virah ki vedana ko vyakt karti sundar kavita
आपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल 20/10/2013, रविवार ‘ब्लॉग प्रसारण’ http://blogprasaran.blogspot.in/ पर भी ... कृपया पधारें ..
सादर धन्यवाद ! शालिनी जी . आभार.
Deleteराजीव जी ,बहुत खुबसूरत रचना !
ReplyDeleteनई पोस्ट महिषासुर बध (भाग तीन)
सादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteहुई मूक वाणी
ReplyDeleteदर्द गहरा गया
पूछती हूँ आप अपने से
क्या प्रिय प्रवासी बिसरा गया ?
इस भौतिक जगत में क्या मिल्न और क्या विछोह सब मेला दो दिन का है बिराग रहो पक्षियों सा। शुक्रिया आपकी टिपण्णी का।