Friday, 11 October 2013

प्रिय प्रवासी बिसरा गया

शरद ऋतु  में हर  साल हजारों ,लाखों की  संख्या में साईबेरियाई प्रवासी पक्षी
लाखों मील की  दूरी तय कर भारत और अन्य एशियाई देशों में आते हैं .
शरद ऋतु की समाप्ति के पश्चात् क्या सभी वापस लौट पाते हैं ?
कुछ भटक जाते हैं ,तो कुछ अपनों से फिर नहीं मिल पाते .

कितने उसके संगी छूटे
कितने उसके साथी छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले
पर इन बिछड़ों पर
कब अपना शोक मनाता है
(बच्चन जी की कविता के तर्ज पर)












फिर आ गई है बरसात                                                                        
तुम न  आए 
आती रही तुम्हारी याद  
तुम न आए 
   
   छा रही काली घटा 
   चपला चमकती 
   काश ! तुम होते यहाँ पर 
   बाजुओं में तुम्हारी आ सिमटती 

रह गया रोकर ह्रदय 
आँखें न  रोई 
बीती यादों में तुम्हारे 
न जाने कब से खोई    
   
   हुई मूक वाणी 
   दर्द गहरा गया 
   पूछती हूँ आप अपने से 
   क्या प्रिय प्रवासी बिसरा गया ?


29 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया रचना राजीव जी।

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    1. सादर धन्यवाद ! मनोज जी . आभार .

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  2. शब्दों में एक प्रवासी का दुःख दिखता है ...

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  3. बहुत सुंदर ,प्रवासी के दर्द को शब्दों में सही उकेरा है .

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  4. बहुत ही बढ़िया रचना .

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  5. बहुत बढ़ि‍या रचना

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  6. प्रेम और फिर विरह ही ऐसी सोच उपजाता है। बहुत प्यारी रचना।

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  7. सादर धन्यवाद ! आभार .

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  8. सुब्दर भावपूर्ण रचना ...

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    1. सादर धन्यवाद ! नासवा जी. आभार .

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  9. Replies
    1. सादर धन्यवाद ! उपासना जी. आभार

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  10. बहुत उत्तम प्रस्तुति

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    1. सादर धन्यवाद ! नीरज जी . आभार .

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  11. कोमल भावों की उत्कृष्ट प्रस्तुति ! बहुत सुंदर रचना !

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  12. क्या बात है इन्हें ही कहतें हैं हंसगुल्ले व्यंग्य विनोद के।

    क्या बात है प्रवासी के गीतों से पीर पक्षी जगत से तदानुभूति।

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    1. सादर धन्यवाद ! आ. वीरेन्द्र जी . आभार.

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  13. हुई मूक वाणी
    दर्द गहरा गया
    पूछती हूँ आप अपने से
    क्या प्रिय प्रवासी बिसरा गया ?... bahut khoob raajeev ji, virah ki vedana ko vyakt karti sundar kavita
    आपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल 20/10/2013, रविवार ‘ब्लॉग प्रसारण’ http://blogprasaran.blogspot.in/ पर भी ... कृपया पधारें ..

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    1. सादर धन्यवाद ! शालिनी जी . आभार.

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  14. राजीव जी ,बहुत खुबसूरत रचना !
    नई पोस्ट महिषासुर बध (भाग तीन)

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  15. हुई मूक वाणी
    दर्द गहरा गया
    पूछती हूँ आप अपने से
    क्या प्रिय प्रवासी बिसरा गया ?

    इस भौतिक जगत में क्या मिल्न और क्या विछोह सब मेला दो दिन का है बिराग रहो पक्षियों सा। शुक्रिया आपकी टिपण्णी का।

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