Monday, 18 November 2013
Monday, 11 November 2013
Sunday, 3 November 2013
कुछ भी पास नहीं है
सब कुछ है देने को
मगर कुछ भी पास नहीं है
यूँ खुद को पिया है कि
हमें प्यास नहीं है
हम तो डूब ही गए
झील सी नीली आँखों में
और तुम हो कि
इस बात का अहसास नहीं है
लूटा है मुझे
मेरे हाथों की लकीरों ने
अपनी ही परछाई पर
अब विश्वास नहीं है
कुछ मुरझाये फूलों से
कमरे को सजाया है
मेरे आँगन में खिलता
अमलतास नहीं है
यूँ टूट के रह जाना
काफी तो नहीं
आने वाले कल का
ये आभास नहीं है
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