Sunday, 3 November 2013

कुछ भी पास नहीं है

सब कुछ है देने को
मगर कुछ भी पास नहीं है
यूँ खुद को पिया है कि
हमें प्यास नहीं है

हम तो डूब ही गए
झील सी नीली आँखों में
और तुम हो कि
इस बात का अहसास नहीं है

लूटा है मुझे 
मेरे हाथों की लकीरों ने 
अपनी ही परछाई पर 
अब विश्वास नहीं है 

कुछ मुरझाये फूलों से
कमरे को सजाया है
मेरे आँगन में खिलता
अमलतास नहीं है

यूँ टूट के रह जाना  
काफी तो नहीं
आने वाले कल का
ये आभास नहीं है  
                                                                                                                                                        

45 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना !
    दीपावली की शुभकामनाएँ !!

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  2. Very nice poem.
    Happy Diwali to you and yours!

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  3. बहुत सुन्दर मन को स्पर्श करती हुईं रचना , राजीव भाई
    नया प्रकाशन --: दीप दिल से जलाओ तो कोईबात बन

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    Replies
    1. सादर धन्यवाद ! आशीष भाई . आभार.

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  4. बहुत खूब ... खुद को पीना भी आसान कहां होता है ...
    दीपावली के पावन पर्व की बधाई ओर शुभकामनायें ...

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    1. सादर धन्यवाद ! आभार.
      शुभकामनाएँ !!

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  5. बहुत सुंदर !!आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामना !!

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    1. सादर धन्यवाद ! आभार.
      शुभकामनाएँ !!

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  6. हम तो डूब ही गए
    झील सी नीली आँखों में
    और तुम हो कि
    इस बात का अहसास नहीं है----
    बहुत सुन्दर ,मुहब्बत में तैरना भी आना चाहिए
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
    नई पोस्ट आओ हम दीवाली मनाएं!

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    Replies
    1. सादर धन्यवाद ! आभार.
      शुभकामनाएँ !!

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  7. पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
    वली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |

    सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
    कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |

    जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
    रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||


    वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी
    पावली=चवन्नी
    गावदी = मूर्ख / अबोध

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    Replies
    1. सादर धन्यवाद ! आभार.
      शुभकामनाएँ !!

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  8. सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    प्रकाशोत्सव के महापर्व दीपादली की हार्दिक शुभकानाएँ।

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    Replies
    1. सादर धन्यवाद ! आभार.
      शुभकामनाएँ !!

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  9. Replies
    1. सादर धन्यवाद ! आभार.
      शुभकामनाएँ !!

      Delete
  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (04-11-2013) महापर्व दीपावली की गुज़ारिश : चर्चामंच 1419 "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    दीपावली के पंचपर्वों की शृंखला में
    अन्नकूट (गोवर्धन-पूजा) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  11. आसां नहीं है
    बीती अहसास नहीं है

    कुछ मुरझाये फूलों से
    कमरे को सजाया है
    मेरे आँगन में खिलता
    अमलतास नहीं है

    यूँ टूट के रह जाना
    काफी तो नहीं
    आने वाले कल का
    ये आभास नहीं है

    सशक्त भावाभिव्यक्ति अर्थ और भाव की संगती देखते बनती है। बातों को भुला देना
    मेरे दर्द का तुम्हें

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    Replies
    1. सादर धन्यवाद ! आभार.
      शुभकामनाएँ !!

      Delete
  12. बहुत ही बेहतरीन। आभार।

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    Replies
    1. सादर धन्यवाद ! आभार.
      शुभकामनाएँ !!

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  13. आप की मुक्त छन्दहीन रचना पढ़ी । इस में भावुकता के साथ यथार्थ का समन्वय है । बधाई ।

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    1. सादर धन्यवाद ! आभार.
      शुभकामनाएँ !!

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  14. लूटा है मुझे
    मेरे हाथों की लकीरों ने
    अपनी ही परछाई पर
    अब विश्वास नहीं है
    ...वाह! बहुत उत्कृष्ट रचना...दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें!

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    Replies
    1. सादर धन्यवाद ! आभार.
      शुभकामनाएँ !!

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  15. लूटा है मुझे
    मेरे हाथों की लकीरों ने
    अपनी ही परछाई पर
    अब विश्वास नहीं है

    ये पंक्तियाँ बहुत ही सुन्दर है

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    Replies
    1. सादर धन्यवाद ! आभार.
      शुभकामनाएँ !!

      Delete
  16. Replies
    1. सादर धन्यवाद ! आभार.
      शुभकामनाएँ !!

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  17. बहुत ही सुन्दर रचना …बधाई

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  18. सादर धन्यवाद ! आभार.
    शुभकामनाएँ !!

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  19. संजीदगी से बहरी बेहतरीन प्रस्तुति

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  20. संजीदगी से भरी बेहतरीन रचना

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  21. जब कुछ न हो पास तभी देने का ख्याल आता है...सुंदर रचना !

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  22. खूबसूरत अभिव्यक्ति

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