सब कुछ है देने को
मगर कुछ भी पास नहीं है
यूँ खुद को पिया है कि
हमें प्यास नहीं है
हम तो डूब ही गए
झील सी नीली आँखों में
और तुम हो कि
इस बात का अहसास नहीं है
लूटा है मुझे
मेरे हाथों की लकीरों ने
अपनी ही परछाई पर
अब विश्वास नहीं है
कुछ मुरझाये फूलों से
कमरे को सजाया है
मेरे आँगन में खिलता
अमलतास नहीं है
यूँ टूट के रह जाना
काफी तो नहीं
आने वाले कल का
ये आभास नहीं है
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Sunday, 3 November 2013
कुछ भी पास नहीं है
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बहुत सुंदर रचना !
ReplyDeleteदीपावली की शुभकामनाएँ !!
सादर धन्यवाद ! आभार .
DeleteVery nice poem.
ReplyDeleteHappy Diwali to you and yours!
Thanks ! Indrani ji.
DeleteHappy Diwali to all of you.
बहुत सुन्दर मन को स्पर्श करती हुईं रचना , राजीव भाई
ReplyDeleteनया प्रकाशन --: दीप दिल से जलाओ तो कोईबात बन
सादर धन्यवाद ! आशीष भाई . आभार.
Deleteबहुत सुंदर रचना !
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत खूब ... खुद को पीना भी आसान कहां होता है ...
ReplyDeleteदीपावली के पावन पर्व की बधाई ओर शुभकामनायें ...
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteशुभकामनाएँ !!
बहुत सुंदर !!आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामना !!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteशुभकामनाएँ !!
हम तो डूब ही गए
ReplyDeleteझील सी नीली आँखों में
और तुम हो कि
इस बात का अहसास नहीं है----
बहुत सुन्दर ,मुहब्बत में तैरना भी आना चाहिए
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
नई पोस्ट आओ हम दीवाली मनाएं!
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteशुभकामनाएँ !!
पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
ReplyDeleteवली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |
सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |
जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||
वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी
पावली=चवन्नी
गावदी = मूर्ख / अबोध
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteशुभकामनाएँ !!
सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
प्रकाशोत्सव के महापर्व दीपादली की हार्दिक शुभकानाएँ।
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteशुभकामनाएँ !!
सुंदर रचना ....
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteशुभकामनाएँ !!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (04-11-2013) महापर्व दीपावली की गुज़ारिश : चर्चामंच 1419 "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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दीपावली के पंचपर्वों की शृंखला में
अन्नकूट (गोवर्धन-पूजा) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आसां नहीं है
ReplyDeleteबीती अहसास नहीं है
कुछ मुरझाये फूलों से
कमरे को सजाया है
मेरे आँगन में खिलता
अमलतास नहीं है
यूँ टूट के रह जाना
काफी तो नहीं
आने वाले कल का
ये आभास नहीं है
सशक्त भावाभिव्यक्ति अर्थ और भाव की संगती देखते बनती है। बातों को भुला देना
मेरे दर्द का तुम्हें
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteशुभकामनाएँ !!
बहुत ही बेहतरीन। आभार।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteशुभकामनाएँ !!
आप की मुक्त छन्दहीन रचना पढ़ी । इस में भावुकता के साथ यथार्थ का समन्वय है । बधाई ।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteशुभकामनाएँ !!
लूटा है मुझे
ReplyDeleteमेरे हाथों की लकीरों ने
अपनी ही परछाई पर
अब विश्वास नहीं है
...वाह! बहुत उत्कृष्ट रचना...दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें!
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteशुभकामनाएँ !!
लूटा है मुझे
ReplyDeleteमेरे हाथों की लकीरों ने
अपनी ही परछाई पर
अब विश्वास नहीं है
ये पंक्तियाँ बहुत ही सुन्दर है
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteशुभकामनाएँ !!
सुंदर रचना
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteशुभकामनाएँ !!
बहुत ही सुन्दर रचना …बधाई
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
ReplyDeleteशुभकामनाएँ !!
bahut hi sunder
ReplyDeletesundar prastuti .badhai
ReplyDeleteसंजीदगी से बहरी बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteसंजीदगी से भरी बेहतरीन रचना
ReplyDeleteजब कुछ न हो पास तभी देने का ख्याल आता है...सुंदर रचना !
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत सुन्दर.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
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ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
सादर धन्यवाद ! आभार.
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