Monday, 11 November 2013

फिर वो दिन

                                                                                                                                                                                                         फिर वो दिन                                                                                          आ गए हैं                        
छलक उठे हैं
मधुमय मधुकलश

सोनजूही चम्पाकली
झूम रही मतवाली
महक उठी 
जीवन की डाली

मुस्काया
प्रकृति का 
कण कण
हर्षित तन मन 

सिंदूरी सूर्ख
अधर करें किलोल
शिरीष के पुष्प सा
सुनहरे हुए कपोल

आम्र मंजरी से सुरभित  
मन हुआ विभोर
बीता जाए 
पल पल

तुम बिन
नीरस नीरव
आकुल मन
  प्रतीक्षारत नैन  

53 comments:

  1. प्रकृति मतवाली ले हिलोर मानव भी संग उसके !
    सुन्दर रचना !

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  2. भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....

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  3. सुन्दर वर्णन-

    आभार भाई जी-

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  4. सुन्दर वर्णन-

    आभार भाई जी-

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  5. Very beautifully composed. Nice words.

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  6. बहुत नजाकत से लिखी गयी कविता |
    आशा

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  7. आकुल मन व प्रतीक्षारत नैन तो इस मौसम में हो ही जाते हैं।

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  8. सुन्दर रचना ...

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  9. प्रकृति हमेशा कवियों को लिखने को प्रेरित करती है ..सुंदर ,,रचना

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  10. बहुत सुंदर भाई जी ! मंगलकामनाएं आपको !

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  11. सुन्दर भावों कि खूबशूरत लड़ियाँ सादर

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  12. बहुत सुंदर प्रस्तुति |

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  13. तुम बिन
    नीरस नीरव
    आकुल मन
    प्रतीक्षारत नैन वाह !कैसी पीर उठी है।

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  14. कल 13/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  15. प्रेम और प्राकृति के मिलन से उपजी रचना ... कोमल एहसास लिए ...

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  16. बहुत खूबसूरत कविता !!

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  17. क्या कहने ..बहुत ही सुन्दर रचना...
    अति सुन्दर...
    :-)

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  18. राजीव भाई , हर बार की तरह सुन्दर शब्दों से सजी आपकी सुन्दर कृति , धन्यवाद
    * जै श्री हरि: *

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    1. सादर धन्यवाद ! आशीष भाई. आभार.

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  19. अति सुन्दर कृति..

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  20. बहुत सुंदर.

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  21. prakritik bimbon ke madhyma se shandaar saundarya chitran sadar badhaaayee ke sath

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  22. सुन्दर रचना .. बहुत बधाई ..

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    1. सादर धन्यवाद ! नीरज जी. आभार.

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  23. बहुत सुंदर रचना.

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  24. सादर धन्यवाद ! आभार.

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  25. Prakarti ki bahut sundar warna kiya he
    Sir apne

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