Tuesday 4 March 2014

स्वप्न सुनहरे


स्वप्न सुनहरे 
चमक उठे हैं
नयनों की 
इस झील में
जैसे झिलमिल करते
तारे अंबर नील में

चिकने कोमल
फूल सरीखी
दमके कंचन काया
रूप अनल में
बड़ा मनोरम
अलकों वाला साया

नव कोंपल
अब वन में फूटी
फैली गंध सुगंध
कर बैठा है
प्रणय आजकल
मौसम से अनुबंध 
    

51 comments:

  1. वाह वाह वाह क्या खूब श्रृंगार लिखा है झा जी आपने, बहुत सुन्दर .. बड निक छै ..

    नव कोंपल
    अब वन में फूटी
    फैली गंध सुगंध
    कर बैठा है
    प्रणय आजकल
    मौसम से अनुबंध क्या कहने , ........................
    .............
    हर पंक्ति से रस टपकता ,
    शब्द करे श्रृंगार
    वसंत के इस मौसम में
    क्या खूब दिया उपहार .. नीरज नीर ..

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत सुंदर रसपूर्ण गीत

      Delete
    2. सादर धन्यवाद ! आभार.

      Delete
  2. बहुत ही सुन्दर श्रृंगार रस कविता,धन्यबाद राजीव जी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर धन्यवाद ! राजेंद्र जी. आभार.

      Delete
  3. कर बैठा है
    प्रणय आजकल
    मौसम से अनुबंध ...बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदरता से निर्मित कृति व प्रस्तुति , बढ़िया राजीव भाई , धन्यवाद

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर धन्यवाद ! आशीष भाई. आभार.

      Delete
  5. वाह ... माधुर्य भाव ... प्राकृति के सुन्दर गीत की तरह ...

    ReplyDelete
  6. बहुत खूब आदरणीय......................कोमल भाव से सुसज्जित कृति..................

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर धन्यवाद ! अनिल जी. आभार.

      Delete
  7. बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति... वसंत नई उमंग तथा नव विचार का सृजन करता है.. कोमल एवं माधुर्य रस से भरपूर रचना के लिए बधाई...

    ReplyDelete
  8. सुन्दर और लय में एक अनमोल कविता
    बहुत सुन्दर शब्द और भाव। बहुत बहुत बधाई है

    ReplyDelete
  9. बहुत सुंदर और कोमल एहसास लिए रचना ... सुंदर प्रस्तुति....

    ReplyDelete
  10. या तो मौसम का असर है या आपकी कविता का, दोनों ही मदहोश करती हैं!! छन्दों का बहाव बहुत सुन्दर है!!

    ReplyDelete
  11. कर बैठा है
    प्रणय आजकल
    मौसम से अनुबंध ...बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  12. चर्चा मंच7 March 2014 at 10:53

    इस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 08/03/2014 को "जादू है आवाज में":चर्चा मंच :चर्चा अंक :1545 पर.

    ReplyDelete
  13. वाह आदरणीय बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  14. स्वप्न हमेशा चमकते ही हैं, मृग मरीचिका कि तरह।

    ReplyDelete
  15. सुन्दर गीतात्मक प्रस्तुति सौरभ बिखेरती

    ReplyDelete

  16. बहुत सुन्दर बहुत कोमल पदावली लिए सशक्त रचना !भाव सौंदर्य अप्रतिम

    ReplyDelete
  17. सादर धन्यवाद ! आभार.

    ReplyDelete
  18. नव कोंपल
    अब वन में फूटी
    फैली गंध सुगंध bahut sundar .....ye kompal hi to jiwan hai ....

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...