वाह वाह वाह क्या खूब श्रृंगार लिखा है झा जी आपने, बहुत सुन्दर .. बड निक छै ..
नव कोंपल अब वन में फूटी फैली गंध सुगंध कर बैठा है प्रणय आजकल मौसम से अनुबंध क्या कहने , ........................ ............. हर पंक्ति से रस टपकता , शब्द करे श्रृंगार वसंत के इस मौसम में क्या खूब दिया उपहार .. नीरज नीर ..
वाह वाह वाह क्या खूब श्रृंगार लिखा है झा जी आपने, बहुत सुन्दर .. बड निक छै ..
ReplyDeleteनव कोंपल
अब वन में फूटी
फैली गंध सुगंध
कर बैठा है
प्रणय आजकल
मौसम से अनुबंध क्या कहने , ........................
.............
हर पंक्ति से रस टपकता ,
शब्द करे श्रृंगार
वसंत के इस मौसम में
क्या खूब दिया उपहार .. नीरज नीर ..
बहुत सुंदर रसपूर्ण गीत
Deleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत ही सुन्दर श्रृंगार रस कविता,धन्यबाद राजीव जी।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! राजेंद्र जी. आभार.
Deleteसुंदर रचना.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteवाह !
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteकर बैठा है
ReplyDeleteप्रणय आजकल
मौसम से अनुबंध ...बहुत सुन्दर
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत सुंदरता से निर्मित कृति व प्रस्तुति , बढ़िया राजीव भाई , धन्यवाद
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आशीष भाई. आभार.
Deleteवाह ... माधुर्य भाव ... प्राकृति के सुन्दर गीत की तरह ...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत खूब आदरणीय......................कोमल भाव से सुसज्जित कृति..................
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! अनिल जी. आभार.
Deleteवाह....
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति... वसंत नई उमंग तथा नव विचार का सृजन करता है.. कोमल एवं माधुर्य रस से भरपूर रचना के लिए बधाई...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteसुन्दर और लय में एक अनमोल कविता
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्द और भाव। बहुत बहुत बधाई है
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत सुंदर और कोमल एहसास लिए रचना ... सुंदर प्रस्तुति....
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteया तो मौसम का असर है या आपकी कविता का, दोनों ही मदहोश करती हैं!! छन्दों का बहाव बहुत सुन्दर है!!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteकर बैठा है
ReplyDeleteप्रणय आजकल
मौसम से अनुबंध ...बहुत सुन्दर
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteइस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 08/03/2014 को "जादू है आवाज में":चर्चा मंच :चर्चा अंक :1545 पर.
ReplyDeleteवाह आदरणीय बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteस्वप्न हमेशा चमकते ही हैं, मृग मरीचिका कि तरह।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteसुन्दर गीतात्मक प्रस्तुति सौरभ बिखेरती
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Delete
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बहुत कोमल पदावली लिए सशक्त रचना !भाव सौंदर्य अप्रतिम
सादर धन्यवाद ! आभार.
ReplyDeleteनव कोंपल
ReplyDeleteअब वन में फूटी
फैली गंध सुगंध bahut sundar .....ye kompal hi to jiwan hai ....
सादर धन्यवाद ! आभार.
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