Monday 29 December 2014

रात बीता हुआ सवेरा है



जब जागो तभी सवेरा है
रौशनी आती मिटता अँधेरा है
दरख्तों से छन कर आती रही
हर तरफ खुशबुओं का डेरा है

वीरानियों में गूंजती आवाजें
फ़जां में पर्बतों का डेरा है
हमसफ़र साथ न चले हम-तुम
इक राह तेरा इक राह मेरा है

कितने दिन बीते रहगुजर नहीं
वीरानियों में भूतों का डेरा है
तेरी जहाँ से कायनात रौशन
जिंदगी की सांझ अब सवेरा है

जागी आँखों में दिखाई देते सपने
बंद आखों में आंसुओं का डेरा है
दौलत से किस्मत बदलते देखा
कहीं उजाला कहीं अँधेरा है

 होना था जहाँ हो सके हम
किस्मत का चारों ओर घेरा है
 मुकां आसां से नहीं मिलतीराजीव
रात बीता हुआ सवेरा है.

16 comments:

  1. जागी आँखों में दिखाई देते सपने
    बंद आखों में आंसुओं का डेरा है
    दौलत से किस्मत बदलते देखा
    कहीं उजाला कहीं अँधेरा है
    प्रेरणा देती सार्थक और सुन्दर रचना

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  2. सुन्दर अभियक्ति ............सही तरीके से यहाँ आपने शब्दों में सवेरा को उकेरा!

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  3. होना था जहाँ हो न सके हम
    किस्मत का चारों ओर घेरा है....बहुत सुंदर।

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  4. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना...

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  5. सादर धन्यवाद ! आ. शास्त्री जी. आभार.

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  6. बहुत ही खूबसूरत भाव ... सच है की रात जाता हुआ सवेरा है ... इस दृष्टिकोण से देखने पे अँधेरे डराते नहीं ...

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  8. बहुत सुन्दर

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  9. सुंदर प्रस्तुति। नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ, सादर।

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  10. Bhawpurn..umda rachna...Chitr ati sunder

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  11. सुंदर और भावपूर्ण...नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  12. बहुत ही सुन्दर रचना....

    "होना था जहाँ हो न सके हम
    किस्मत का चारों ओर घेरा है"

    उम्मीद से आसमान कायम है. आने वाला नया वर्ष हम सबके लिए अच्छे से अच्छा हो.

    नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

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