जब जागो तभी सवेरा है
रौशनी आती मिटता अँधेरा है
दरख्तों से छन कर आती रही हर तरफ खुशबुओं का डेरा है
वीरानियों
में गूंजती आवाजें
फ़जां में पर्बतों का डेरा है हमसफ़र साथ न चले हम-तुम इक राह तेरा इक राह मेरा है
कितने दिन बीते रहगुजर नहीं
वीरानियों में भूतों का डेरा है तेरी जहाँ से कायनात रौशन जिंदगी की सांझ अब सवेरा है
जागी आँखों में दिखाई देते सपने
बंद आखों में आंसुओं का डेरा है दौलत से किस्मत बदलते देखा कहीं उजाला कहीं अँधेरा है
होना था जहाँ हो न सके
हम
किस्मत का चारों ओर घेरा है मुकां आसां से नहीं मिलती ‘राजीव’ रात बीता हुआ सवेरा है. |
Monday 29 December 2014
रात बीता हुआ सवेरा है
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सुंदर रचना.
ReplyDeleteजागी आँखों में दिखाई देते सपने
ReplyDeleteबंद आखों में आंसुओं का डेरा है
दौलत से किस्मत बदलते देखा
कहीं उजाला कहीं अँधेरा है
प्रेरणा देती सार्थक और सुन्दर रचना
एकदम लाजवाब
ReplyDeleteसुन्दर अभियक्ति ............सही तरीके से यहाँ आपने शब्दों में सवेरा को उकेरा!
ReplyDeleteहोना था जहाँ हो न सके हम
ReplyDeleteकिस्मत का चारों ओर घेरा है....बहुत सुंदर।
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteSahaj saral bhavo ka deraa hai
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आ. शास्त्री जी. आभार.
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत भाव ... सच है की रात जाता हुआ सवेरा है ... इस दृष्टिकोण से देखने पे अँधेरे डराते नहीं ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति। नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ, सादर।
ReplyDeleteBhawpurn..umda rachna...Chitr ati sunder
ReplyDeleteसुंदर और भावपूर्ण...नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना....
ReplyDelete"होना था जहाँ हो न सके हम
किस्मत का चारों ओर घेरा है"
उम्मीद से आसमान कायम है. आने वाला नया वर्ष हम सबके लिए अच्छे से अच्छा हो.
नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं