यहां चेहरे तो लाखों
हैं इंसां मगर दिखता नहीं
पत्थर हाथ में न रखो शीशे का मकां मिलता नहीं
आदमी आदमी में जबसे भेद
होने लगा है
हाथ मिलता है दिल मगर मिलता
नहीं
दोस्त कौन है और कौन है
दुश्मन
जानते सब हैं कोई मगर कहता
नहीं
जुनूने इश्क के रंग भी अजीब
हैं
दर्द तो देता है दवा मगर
देता नहीं
खरीदने बिकने की बात क्यों
करता है
कैसे खरीदोगे ईमान मगर बिकता नहीं
दरिया किस तरह पार करोगे
‘राजीव’
कश्ती है साहिल मगर दिखता
नहीं |
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Saturday, 28 February 2015
ईमान बिकता नहीं
Saturday, 21 February 2015
क्यों वादे करते हैं
अपनों से दिल टूट गया गैरों
में हम चलते हैं
सुनने वाला कोई नहीं ख़त्म
कहानी करते हैं
उम्र भर रस्ता देखा आंखें भी
पथराती रहीं
इस राह आना ही नहीं क्यों
रस्तों को तकते हैं
वादा करके भूलने वाले इसकी चुभन वे क्या जानें
पूरा होने का सबब नहीं फिर
क्यों वादे करते हैं
बंद लबों पर अनकही बातें
कहने को बेताब रहें
मिलने पर लब हिले नहीं ठंढी
आहें भरते हैं
दिल के दीवाने मौत से कब
डरने लग जाएं
‘राजीव’ जीने वालों का हाल
सुनाते फिरते हैं
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Saturday, 14 February 2015
दिल का मलाल क्या कहा जाए
साथ गर आपका जो मिल जाए
सफ़र जिंदगी का आसां से कट
जाए
मन का बंद दरवाजा खुलने को
है
खुशबुओं की राह से जो गुजरा
जाए
मौसम सर्दियों का जाने लगा है
धूप भी इतराती इठलाती आए
हल हो जाएगा खुदबखुद एक दिन
मसलों को सवालों की तरह रखा
जाए
अंधेरों में ढूंढ़ते रहते
हैं जाने क्या
उजालों का हाल क्या कहा जाए
लोग कहते हैं आंसू पानी है
‘राजीव’ दिल का मलाल
क्या कहा जाए
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Saturday, 7 February 2015
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