Saturday, 7 February 2015

तनहा शाम है



न चैन तुम्हें है
न हमें आराम है
दोनों की सुबह उदास
और तनहा शाम है

कभी दर्द बनकर
कभी दवा बनकर
रह गई उम्र
फ़लसफ़ा बनकर

रंजिश न बढ़ा
न रह जाए
हर मुलाकात
फासला बनकर 
    

20 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना

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  2. वाह..वाह..क्‍या बात है। बहुत खूब भाई साहब।

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  3. बहुत खूब ... रंजिशें कम होनी चाहियें ...
    मज़ा आया ...

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  4. वाह वाह, बेहतरीन

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  5. ख़ूबसूरत पंक्तियाँ, सुंदर अभिव्यक्ति...

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  6. सुन्दर कविता . अंतिम पंक्तियों में 'रहा जाए' शायद 'रह जाए' होगा

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    1. सादर आभार. टाइपिंग की त्रुटि है.सुधार कर लिया गया है.

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  7. छोटे छन्दों में रची प्यारी सी कविता... दोनों तरफ बराबर लगी आग कहूँ या दर्द का दर्द से मिलकर दवा बन जाना कहूँ... बस कुछ न कहा जाये तो शायद सब कहा जा सकेगा!!

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  8. हक़ीक़त!
    बहुत सुन्दर रचना
    आभार

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  9. अहसासों से लवरेज़ सुंदर प्रस्तुति।

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  10. रंजिश न बढ़ा
    न रह जाए
    हर मुलाकात
    फासला बनकर
    हर बार जीवन में यहीं होता हैं

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  12. आज बहुत कोशिश करने पर भी कुछ नहीं लिख पाया। शायद अब लिखने के लिए बहुत कुछ हैं, बहुत कुछ में जो कुछ था लिखने के लिए वहीं कहीं खो गया हैं.

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  13. आखिरी कुछ पंक्तियां सच में सटीक और प्रभावी बन पड़ी हैं ! और जैसा आदरणीय दिगंबर जी ने कहा , रंजिशें कम होनी ही चाहिए ! बेहतरीन प्रस्तुति

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  14. वाह! बहुत सुंदर।

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