अपनों से दिल टूट गया गैरों
में हम चलते हैं
सुनने वाला कोई नहीं ख़त्म
कहानी करते हैं
उम्र भर रस्ता देखा आंखें भी
पथराती रहीं
इस राह आना ही नहीं क्यों
रस्तों को तकते हैं
वादा करके भूलने वाले इसकी चुभन वे क्या जानें
पूरा होने का सबब नहीं फिर
क्यों वादे करते हैं
बंद लबों पर अनकही बातें
कहने को बेताब रहें
मिलने पर लब हिले नहीं ठंढी
आहें भरते हैं
दिल के दीवाने मौत से कब
डरने लग जाएं
‘राजीव’ जीने वालों का हाल
सुनाते फिरते हैं
|
---|
Saturday, 21 February 2015
क्यों वादे करते हैं
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteवादा करके भूलने वाले इसकी चुभन वे क्या जानें
ReplyDeleteपूरा होने का सबब नहीं फिर क्यों वादे करते हैं
बंद लबों पर अनकही बातें कहने को बेताब रहें
मिलने पर लब हिले नहीं ठंढी आहें भरते हैं
एकदम बढ़िया रचना श्री राजीव कुमार जी
ReplyDeleteवादा करके भूलने वाले इसकी चुभन वे क्या जानें
पूरा होने का सबब नहीं फिर क्यों वादे करते हैं......बहुत सुंदर
वाह! बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteआपने तो बिल्कुल हक़ीकत को बयान कर दिया है,सार्थक प्रस्तुति.
ReplyDeleteसादर आभार !
ReplyDeleteवादों का नाता है गहरा
ReplyDeleteबे-वादा हो जाना---
सो काहे का रोना
पछताना भी बे-वादा है.
हकीकत बयान करते शेर ... बहुत सटीक अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteबंद लबों पर अनकही बातें कहने को बेताब रहें
ReplyDeleteमिलने पर लब हिले नहीं ठंढी आहें भरते हैं
.
लाज़वाब,शेर हैं.मज़ा आगया.
"‘राजीव’ जीने वालों का हाल सुनाते फिरते हैं" बेहत ही सुन्दर :)
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और बढ़िया रचना... धन्यवाद...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आप सभी लोगो का हार्दिक स्वागत है.
Sundar Kavita!
ReplyDeleteसही कहा आपने ........सुन्दर रचना!
ReplyDeleteवादा करके भूलने वाले इसकी चुभन वे क्या जानें
ReplyDeleteपूरा होने का सबब नहीं फिर क्यों वादे करते हैं
......बहुत सुंदर
मिलने पर लब हिले नहीं ठंढी आहें भरते हैं...सुन्दर अभिव्यक्ति! साभार! राजीव जी!
ReplyDeleteधरती की गोद