Saturday, 28 March 2015

अपनों से लड़ना पड़ा मुझे



सब कुछ पाकर बहुत कुछ खोना पड़ा मुझे
अनजान राहों पर कितना भटकना पड़ा मुझे 

हम तुम मिले थे कभी याद तो नहीं
 भूलने से पहले दिल पर पत्थर रखना पड़ा मुझे

क्या बात हुई कि गैर को अपना लिया तुमने
अपना तो मैं भी था फिर भी तड़पना पड़ा मुझे

पेड़ की अनचाही डाल समझ काटना चाहा तुमने 
इस बात पर सबसे कितना झगड़ना पड़ा मुझे

  अपने तो अपने गैर भी मुंह नहीं फेरा करते
‘राजीव’ तेरी चाहत में अपनों से लड़ना पड़ा मुझे  
    

Sunday, 22 March 2015

फिर कोई कहानी


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क्या पता कैसी खुमारी
आज पलकों में समाई
मोहिनी उषा कपोलों में
संवर के मुस्कुरायी

पवन चल परदेश से
प्रिय की पदचाप लायी
थाम लो उर हर्ष विह्वल
मधुनिशा फिर संग लायी

करवटें लेने लगीं
फिर कल्पनाएं
जन्म लेने लग गयी
फिर कोई कहानी

यादों की हरीतिमा
मधुर स्मृति बन  
बंद होठों में
नगमा बन गुनगुनायी 
    

Sunday, 15 March 2015

बीत गए दिन


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   बीत गए दिन गुड़ियों वाले
परियों वाली रात गयी
पंख लगाकर उड़ी कल्पना
चाहत जागी नयी नयी  

मांग अटपटी सी रखती है
तन्हाई में आज उमर
पलक मूंदते ही आ जाता
सपनों में एक राजकुंवर

मानसरोवर के शतदल ज्यों
मधुबन में कोयल की गुंजन
खींच रहा विपुल वेग से
हाय ! तुम्हारा यह भोलापन 
                                                                                                                

Sunday, 8 March 2015

खुशियों की बात हो



गम की नहीं
खुशियों की बात हो
अब उदासी नहीं
मुस्काने की बात हो

गिले शिकवे भूलने
दिलों को जोड़ने की बात हो
स्नेह और प्रेम की
अपनेपन की बात हो

दिल में चुभने वाली नहीं
सहलाने की बात हो
सतरंगे सपनों के आगोश में
खो जाने की बात हो  
    
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