सब कुछ पाकर बहुत कुछ खोना
पड़ा मुझे
अनजान राहों पर कितना
भटकना पड़ा मुझे
हम तुम मिले थे कभी याद तो
नहीं
भूलने से पहले दिल पर
पत्थर रखना पड़ा मुझे
क्या बात हुई कि गैर को
अपना लिया तुमने
अपना तो मैं भी था फिर भी
तड़पना पड़ा मुझे
पेड़ की अनचाही
डाल समझ काटना चाहा तुमने
इस बात पर सबसे कितना
झगड़ना पड़ा मुझे
अपने तो अपने गैर भी मुंह
नहीं फेरा करते
‘राजीव’ तेरी चाहत
में अपनों से लड़ना पड़ा मुझे |
Saturday, 28 March 2015
अपनों से लड़ना पड़ा मुझे
Sunday, 22 March 2015
Sunday, 15 March 2015
Sunday, 8 March 2015
Subscribe to:
Posts (Atom)