झूठे सपने देखे क्यूं
ये तो टूट जाते हैं
आज जिसे अपना कहेंगे
कल लोग भूल जाते हैं
बंद हो जाए जब
जहां के दरवाजे
खामोश आवाजों की
दस्तक सुन पाते हैं
मन में कुछ दिनों से
उठ रहा एक सवाल है
क्या इंसान इस तरह
जीता हर हाल है
यूं ही किसी तरह बस
गुजरा वक्त हर हाल है
उम्मीदों के पंख पर
तैरता साल दर साल है
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अच्छी कविता!
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद दिखे आज । सुंदर रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ...
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (15-08-2015) को "राष्ट्रभक्ति - देशभक्ति का दिन है पन्द्रह अगस्त" (चर्चा अंक-2068) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
स्वतन्त्रतादिवस की पूर्वसंध्या पर
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार !
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteहिंदीकुंज.कॉम
प्रभावी अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सपने अक्सर टूट ही जाते हैं
ReplyDeleteयूं ही किसी तरह बस
ReplyDeleteगुजरा वक्त हर हाल है
उम्मीदों के पंख पर
तैरता साल दर साल है
बहुत ख़ूब
http://savanxxx.blogspot.in
उम्मीद तो रहनी ही चाहिए ... पर झूठे सपने नहीं ...
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना ....