Friday, 14 August 2015

झूठे सपने



झूठे सपने देखे क्यूं
ये तो टूट जाते हैं 
आज जिसे अपना कहेंगे
कल लोग भूल जाते हैं 

बंद हो जाए जब
जहां के दरवाजे
खामोश आवाजों की
दस्तक सुन पाते हैं 

मन में कुछ दिनों से
उठ रहा एक सवाल है
क्या इंसान इस तरह
जीता हर हाल है

यूं ही किसी तरह बस
गुजरा वक्त हर हाल है
उम्मीदों के पंख पर
तैरता साल दर साल है 
    

12 comments:

  1. बहुत दिनों बाद दिखे आज । सुंदर रचना ।

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  2. बहुत सुंदर रचना ...

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (15-08-2015) को "राष्ट्रभक्ति - देशभक्ति का दिन है पन्द्रह अगस्त" (चर्चा अंक-2068) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    स्वतन्त्रतादिवस की पूर्वसंध्या पर
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !
    हिंदीकुंज.कॉम

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  5. प्रभावी अभिव्यक्ति.


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  6. बहुत सुन्दर सपने अक्सर टूट ही जाते हैं

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  7. यूं ही किसी तरह बस
    गुजरा वक्त हर हाल है
    उम्मीदों के पंख पर
    तैरता साल दर साल है
    बहुत ख़ूब
    http://savanxxx.blogspot.in

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  8. उम्मीद तो रहनी ही चाहिए ... पर झूठे सपने नहीं ...
    भावपूर्ण रचना ....

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