फिर कहीं दिल मचल गया होता
वक्त तक होश में जो रहा
होता
इक आग सुलग उठती सीने में
रफ्ता-रफ्ता जो हवा दिया
होता
इस उम्र का तकाजा भी क्या
कहिए
दिल के हाथों मजबूर न हुआ
होता
ये तो अच्छा हुआ लोग सामने
न थे
वरना भीड़ से पत्थर उछल गया
होता
दर्दे दिल की दवा क्या करिए
‘राजीव’
दिल अपने वश में जो रहा
होता
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteइस उम्र का तकाजा भी क्या कहिए
ReplyDeleteदिल के हाथों मजबूर न हुआ होता
ये तो अच्छा हुआ लोग सामने न थे
वरना भीड़ से पत्थर उछल गया होता
बहुत बेहतरीन श्री राजीव जी !!
सुन्दर प्रस्तुति...
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ReplyDeleteये तो अच्छा हुआ लोग सामने न थे
ReplyDeleteवरना भीड़ से पत्थर उछल गया होता....
'......
बहुत सुन्दर
वाह...बहुत ख़ूबसूरत अशआर...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर पंक्तियां।
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