Tuesday 3 November 2015

दास्तां सुनाता है मुझे

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जब कभी सपनों में वो बुलाता है मुझे
बीते लम्हों की दास्तां सुनाता है मुझे

इंसानी जूनून का एक पैगाम लिए
बंद दरवाजों के पार दिखाता है मुझे

नफरत,द्वेष,ईर्ष्या की कोई झलक नहीं
ये कौन सी जहां में ले जाता है मुझे

मेरे इख्तयार में क्या-क्या नहीं होता
बिगड़े मुकद्दर की याद दिलाता है मुझे


रुक-रुक कर आती दरवाजे से दस्तक
ये मिरा वहम है या कोई बुलाता है मुझे

उसको भी मुहब्बत है यकीं है मुझको
उसके मिलने का अंदाज बताता है मुझे

'राजीव’ तुम बिन बीता अनगिनत पल
शबे गम में रोज जलाता है मुझे 


    

12 comments:

  1. मेरे इख्तयार में क्या-क्या नहीं होता
    बिगड़े मुकद्दर की याद दिलाता है मुझे


    रुक-रुक कर आती दरवाजे से दस्तक
    ये वहम है या कोई बुलाता है मुझे
    शानदार अल्फ़ाज़ों में गुँथी सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने राजीव जी !

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (04-11-2015) को "कलम को बात कहने दो" (चर्चा अंक 2150) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. अति-सुन्दर जज़्बात

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  4. उसको भी मुहब्बत है यकीं है मुझको
    उसके मिलने का अंदाज बताता है मुझे.

    मुबारक हो. खूबसूरत अहसास.

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  5. बहुत सुंदर पोस्‍ट। खूबसूरत अहसास।

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