गजरे में बांध लिया
प्रिय तुमने मेरा मन
नजरें झुकी-झुकी
लगती क्यों अलसाई
ज्यों फूलों पर छा जाती
सूरज की अरुणाई
लहराते केश ज्यों
रूई की फाहें
तुमसे मिलने को
अनगिनत हैं राहें
मन तो रीता है
तुम संग जीता है
मोहपाश यह कौन सा
सुधबुध खोता तनमन
गजरे में बांध लिया
प्रिय तुमने मेरा मन
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Bahut hi sunder!
ReplyDeleteLovely!
ReplyDeleteप्यारा गीत। वाह!
ReplyDeleteप्यारा गीत। वाह!
ReplyDeleteसुंदर !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
ReplyDeleteगजरे सा महका सुन्दर गीत ....
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना। मनमोहक।
ReplyDeleteWah! Ati sunder!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteJadu hai, Tera hee jadu hai,
ReplyDeleteKya gajara, kya kajara, man be kaboo hai.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29 - 10 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2144 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
सादर आभार.
Deleteबेहतरीन प्रस्तुति
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