सब कुछ पाकर बहुत कुछ खोना
पड़ा मुझे
अनजान राहों पर कितना
भटकना पड़ा मुझे
हम तुम मिले थे कभी याद तो
नहीं
भूलने से पहले दिल पर
पत्थर रखना पड़ा मुझे
क्या बात हुई कि गैर को
अपना लिया तुमने
अपना तो मैं भी था फिर भी
तड़पना पड़ा मुझे
पेड़ की अनचाही
डाल समझ काटना चाहा तुमने
इस बात पर सबसे कितना
झगड़ना पड़ा मुझे
अपने तो अपने गैर भी मुंह
नहीं फेरा करते
‘राजीव’ तेरी चाहत
में अपनों से लड़ना पड़ा मुझे |
सुंदर एवं भावपूर्ण रचना...बधाई
ReplyDeletetere sath me gair ko apna banana seekh liya
ReplyDeleteya fir apno me chipi gair ki harkat ko adat manna seekh liya..
yu hi hua
ki tujhe bhulne me tujhse hi nhi khud se ladna pad gaya
hume to apne andar ke 'apne' se ladna pad gaya
:-)
khoobsurat rachna
tere sath me gair ko apna banana seekh liya
ReplyDeleteya fir apno me chipi gair ki harkat ko adat manna seekh liya..
yu hi hua
ki tujhe bhulne me tujhse hi nhi khud se ladna pad gaya
hume to apne andar ke 'apne' se ladna pad gaya
:-)
khoobsurat rachna
गैर तो गैर अपने भी मुंह नहीं फेरा करते
ReplyDelete‘राजीव’ तेरी चाहत में अपनों से लड़ना पड़ा मुझे
सुंदर एवं भावपूर्ण रचना...
सुंदर रचना राजीव भाई।
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteसादर आभार.
ReplyDeleteBahot hi khubsurat dil se nikle words
ReplyDeleteबहुत खूब ... जुदा जुदा से शेर सभी ... लाजवाब शेर ...
ReplyDeleteबेहतरीन पंक्तियाँ
ReplyDeleteबढ़िया ।
ReplyDeleteसुन्दर रचना !
ReplyDeleteअपने तो अपने गैर भी मुंह नहीं फेरा करते
ReplyDelete‘राजीव’ तेरी चाहत में अपनों से लड़ना पड़ा मुझे ...बहुत सुन्दर रचना
खूबसूरत पंक्तियाँ।
ReplyDeleteहम तुम मिले थे कभी याद तो नहीं
ReplyDeleteभूलने से पहले दिल पर पत्थर रखना पड़ा मुझे
वाह! क्या बात है!क्या खूब कहा सर आपने!
सुन्दर पंक्तियाँ
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