Saturday, 28 March 2015

अपनों से लड़ना पड़ा मुझे



सब कुछ पाकर बहुत कुछ खोना पड़ा मुझे
अनजान राहों पर कितना भटकना पड़ा मुझे 

हम तुम मिले थे कभी याद तो नहीं
 भूलने से पहले दिल पर पत्थर रखना पड़ा मुझे

क्या बात हुई कि गैर को अपना लिया तुमने
अपना तो मैं भी था फिर भी तड़पना पड़ा मुझे

पेड़ की अनचाही डाल समझ काटना चाहा तुमने 
इस बात पर सबसे कितना झगड़ना पड़ा मुझे

  अपने तो अपने गैर भी मुंह नहीं फेरा करते
‘राजीव’ तेरी चाहत में अपनों से लड़ना पड़ा मुझे  
    

16 comments:

  1. सुंदर एवं भावपूर्ण रचना...बधाई

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  2. tere sath me gair ko apna banana seekh liya
    ya fir apno me chipi gair ki harkat ko adat manna seekh liya..
    yu hi hua
    ki tujhe bhulne me tujhse hi nhi khud se ladna pad gaya
    hume to apne andar ke 'apne' se ladna pad gaya
    :-)
    khoobsurat rachna

    ReplyDelete
  3. tere sath me gair ko apna banana seekh liya
    ya fir apno me chipi gair ki harkat ko adat manna seekh liya..
    yu hi hua
    ki tujhe bhulne me tujhse hi nhi khud se ladna pad gaya
    hume to apne andar ke 'apne' se ladna pad gaya
    :-)
    khoobsurat rachna

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  4. गैर तो गैर अपने भी मुंह नहीं फेरा करते
    ‘राजीव’ तेरी चाहत में अपनों से लड़ना पड़ा मुझे
    सुंदर एवं भावपूर्ण रचना...

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  5. सुंदर रचना राजीव भाई।

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  6. सुन्दर रचना

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  7. Bahot hi khubsurat dil se nikle words

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  8. बहुत खूब ... जुदा जुदा से शेर सभी ... लाजवाब शेर ...

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  9. बेहतरीन पंक्तियाँ

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  10. सुन्दर रचना !

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  11. अपने तो अपने गैर भी मुंह नहीं फेरा करते
    ‘राजीव’ तेरी चाहत में अपनों से लड़ना पड़ा मुझे ...बहुत सुन्दर रचना

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  12. खूबसूरत पंक्तियाँ।

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  13. हम तुम मिले थे कभी याद तो नहीं
    भूलने से पहले दिल पर पत्थर रखना पड़ा मुझे

    वाह! क्या बात है!क्या खूब कहा सर आपने!

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  14. सुन्दर पंक्तियाँ

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