तन कस्तूरी लगता है
दिल से दिल मिले यदि तो
सारा जग अपना लगता है
तुम्हें देख कानन तरूवर
विहँसने का उपक्रम करतेक्यों शाख पे लिपटी लताएं
क्यों पवन मंद मंद बहते
मरूस्थल में भी फूल खिलाना
तुमको ही क्यों आते हैंझरने कैसे इठलाते हैं
पंछी क्यों सुर में गाते हैं
दसों दिशाओं से सुरभित
मानव मन की कस्तूरीमन से मन यदि मिला रहे
तो कहाँ किसी से यह दूरी
जीवन का व्यापार यही है
जग की सारी प्रणय कहानीतुममें ही सब छिपा हुआ है
सकल जगत ने यह जानी
बहुत अच्छी कविता .
ReplyDeleteधन्यवाद ! सराहना के लिए आभार.
Deleteदसों दिशाओं से सुरभित
ReplyDeleteमानव मन की कस्तूरी
मन से मन यदि मिला रहे
तो कहाँ किसी से यह दूरी
बहुत अच्छी पंक्तियाँ .
सादर धन्यवाद ! सराहना के लिए आभार .
Deleteबहुत सुन्दर लिखा है..
ReplyDeleteसादर धन्यवाद !अमृता जी . मेरे ब्लॉग पर आने और प्रतिक्रिया एवम् सराहना के लिये आभार .
Deleteसादर धन्यवाद !सक्सेना जी . मेरे ब्लॉग पर आने और प्रतिक्रिया एवम् सराहना के लिये आभार .शीघ्र ही हाजिर होता हूँ.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियाँ ....
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! मोनिका जी. सराहना के लिए आभार .
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