यूँ अनायास मिलना
दुनियाँ के गलियारों में
साथ-साथ फिरना
अभी छू गई है
पुरवाई गालों को दे गया चुनौती कौन
दर्द के उबालों को
दहलीज को चूम रहे
आँगन अमलतास के उधेड़ दो न अब घूंघट
क्षणजीवी प्यास के
कितनी भारी है
आँखों का सूनापन सोया सा लगता है
सांसों का सूनापन
मन से टकराता है
ऐसे सन्नाटा कंठ में चुभे जैसे
सेही का कांटा
पोर पोर में सरसों फूली
आँखें रसमसाती
मधु अतीत की सुगंध पीकर
पांखें कसमसाती
अच्छी कविता .
ReplyDeleteदहलीज को चूम रहे
आँगन अमलतास के
उधेड़ दो न अब घूंघट
क्षणजीवी प्यास के
बहुत अच्छी पंक्तियाँ .
धन्यवाद ! सराहना के लिये आभार .
Deleteबहुत अच्छी कविता .
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! सराहना के लिये आपका आभार .
Deleteअति सुन्दर..
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! अमृता जी. मेरे ब्लॉग पर आने और प्रतिक्रिया एवम् सराहना के लिये आभार ..
Deleteसुन्दर!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
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