Friday, 30 August 2013

साज कोई छेड़ो

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

साज कोई छेड़ो
गीत नया गाने दो
बहुत तनहा है ये दिल
आज उसे बह जाने दो

 

  प्यार की ये नजर
  अब इधर मोड़ दो

  किस तरह प्रीत का
  वो डोर न तोड़ दो

 

इक नशा था
वो वक़्त भी था
मेरे घर का
तुम पर तारी था

  

  जा रहे हो
  ये भी वक्त है
  मेरी गली से
  नजरें चुरा के

 

ये अहसास न होता
गर तेरी जुदाई का
तुमसे प्यार न होता
इस कदर बेइंतिहा

4 comments:

  1. अच्छी कविता .

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  2. साज कोई छेड़ो
    गीत नया गाने दो
    बहुत तनहा है ये दिल
    आज उसे बह जाने दो
    bahut sundar bhavbhari rachana .. aabhar !

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  3. अति सुन्दर .

    ReplyDelete
  4. कितना अच्छा लिखा है आपने।
    बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |सादर मदन

    http://madan-saxena.blogspot.in/
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