नयन खुले अधखुले
सहमी सहमी है हवाएं
पलकों पर बोझिल
बेरहमी सपनों की
लहरे लहरे केशों की
बिखरी परिभाषा
अधरों पर सुर्ख हो रही
अतृप्त मन की आशा
उठा नहीं पाते जो
झुकाते हैं पलकें
मिला नहीं पाते हैं अब
अपने आप से ही नजरें
बंधते जा रहे हैं
मेरे ही अल्फाजों में
सिमटते जा रहे हैं
मेरे ही अहसासों में
दूर
क्षितिज नीलांचल फैला
अपनी
बांह पसारे
जीवन
नौका पर बैठे हैं
मंजिल हमें निहारे
कितने
ही तूफ़ान घिरे
पर
कभी न हिम्मत हारा
अरूणिम
संध्या और उषा से
संगम
हुआ हमारा