गुलमोहर के गाँव
चांदनी में खो गए हैं
गीत यूँ मधुमास के
छंद ऋतुओं ने रचे हैं
कुंकुमी आकाश के.
किस सपनों में खोए
चले दूर के गाँव
सतरंगी खुशियों की चाहत
मिले नेह की छांव.
उम्र के वन में विचरते थम गए
थके हुए दो पांव
पूछते हैं फासले अब
दूर कितने गुलमोहर के गाँव.
सुन्दर रचना..:-)
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! रीना जी ,आभार .
Deleteउम्र के वन में
ReplyDeleteविचरते थम गए
थके हुए दो पांव
पूछते हैं फासले अब
दूर कितने गुलमोहर के गाँव.
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ .
Deleteसादर धन्यवाद !आभार .
गुलमोहर के गाँव: इस गंतव्य तक पहुंचे पांव!!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! अनुपमा जी ,आभार .
Deleteसादर धन्यवाद ! आभार .
ReplyDeleteबहुत उत्कृष्ट हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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बहुत अच्छी लगी रचना ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद !आभार.
ReplyDelete☆★☆★☆
चांदनी में खो गए हैं
गीत यूँ मधुमास के
छंद ऋतुओं ने रचे हैं
कुंकुमी आकाश के.
किस सपनों में खोए
चले पिया के गाँव
सतरंगी खुशियों की चाहत
मिले प्यार की छांव.
आहाऽहऽऽ…!
बहुत सुंदर गीत लिखा है आपने आदरणीय राजीव कुमार झा जी
आनंद आ गया...
सुंदर रचना के लिए हृदय से साधुवाद
शुभकामनाओं मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
सादर धन्यवाद ! आदरणीय राजेंद्र जी .आभार .
Deleteआपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |
ReplyDeleteकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
सादर धन्यवाद ! संजय जी.आभार .
Deleteमनमोहक।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद !आभार .
Deleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
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