चाँद जरा रुक जाओ
चाँद जरा रुक जाओ
आने दो दूधिया रौशनी
सितारों थोडा और चमको
बिखेर दो रौशनी
मैं अपने महबूब को
ख़त लिख रहा हूँ
चांदनी रात में
महबूब को ख़त लिखना
कितना सुकूं देता है
तुम यादों में बसे
या ख्वाबों में
दिल की गहराईयों में
एक अहसास जगा देता है
तुम कितने पास हो
मैं कितना दूर
एक लौ है जो
दोनों में जली हुई
नयनों के कोर से
कभी देखा था तुझे
सिमट आई थी लालिमा
रक्ताभ कपोलों पर
तारों भरी रात में
गीली रेत पर चलते हुए
हौले से छुआ था तुमने
सुनाई दे रही थी
तुम्हारे सांसों की अनुगूंज
नि:स्तब्द्धता को तोड़ते हुए
तुम इतने दूर हो
जहाँ जमीं से आसमां
कभी नहीं मिलता
ये ख्वाब हैं
ख्वाब ही रहने दो
बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
DeleteSunder Panktiyan
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteबहुत सुन्दर रचना..
ReplyDelete:-)
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteसुंदर रचना |
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! प्रदीप जी. आभार.
Deleteबहुत सुन्दर भाव.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteजहाँ जमीं से आसमां
ReplyDeleteकभी नहीं मिलता
ये ख्वाब हैं
ख्वाब ही रहने दो
.................... सुंदर पंक्तियाँ
सादर धन्यवाद ! संजय जी आभार.
Deleteसुखद अहसास!
ReplyDeleteप्रियतम के पास
यादों में या ख्वाबों में
बस गूँजती है साँस ....
सुहानी चांदनी में चाँद से मुलाकात !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया !
तारों भरी रात में
ReplyDeleteगीली रेत पर चलते हुए
हौले से छुआ था तुमने
सुनाई दे रही थी
तुम्हारे सांसों की अनुगूंज
नि:स्तब्द्धता को तोड़ते हुए ...
ये निताब्धता उनके साथ ख्यालों में ले जाती है जहां होते हैं हम तुम ... कोई दूजा नहीं ...
तुम कितने पास हो
ReplyDeleteमैं कितना दूर
एक लौ है जो
दोनों में जली हुई
यह लौ ही तो हमारी चांद के साथ नजदीकी बनाये रखती है।
आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल {बृहस्पतिवार} 19/09/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ...
bahut sundar........
ReplyDeleteसुंदर रचना है , आभार आपका !
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! सतीश जी . आभार .
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