Saturday, 7 September 2013

शब्द ढले नयनों से















इन प्रणय के कोरे कागज पर
कुछ शब्द ढले नयनों से
आहत मोती के मनकों को
चुग डालो प्रिय अंखियों से
कितने चित्र रचे थे मैंने
खुली हथेली पर
कितने छंद उकेरे तुमने
नेह पहेली पर
अवगुंठन खुला लाज का
बांच गए पोथी मन मितवा
जीत गई पिछली मनुहारें
खिले फूल मोती के बिरवा
भोर गुलाबी सप्त किरण से
मन पर तुम छाए
जैसे हवा व्यतीत क्षणों को
बीन बीन लाए
बरसों बाद लगा है जैसे
सोंधी गंध बसी हों मन में
मीलों लम्बे सफ़र लांघकर
उमर हँसी हों मन दर्पण में
नदिया की लहरों से पुलकित
साँझ ढले तुम आए
लगा कि मौसम ने खुशबू के
छंद नए गाए.


22 comments:

  1. मीलों लम्बे सफ़र लांघकर
    उमर हँसी हों मन दर्पण में
    ***
    ये हंसी बनी रहे!
    सादर!

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    1. सादर धन्यवाद ! अनुपमा जी . आभार .

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  2. अच्छे, मनमोहक शब्द हैं... बहुत खूब।

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    1. सादर धन्यवाद ! शाहनवाज जी . आभार .

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  3. Replies
    1. सादर धन्यवाद ! रीना जी . आभार .

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  4. बहुत सुन्दर .

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  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!

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    1. सादर धन्यवाद ! रंजना जी . आभार .

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  6. आदरणीय राजीव सर, सादर प्रणाम
    बहुत सुन्दर और धारदार सर.......

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    1. सादर धन्यवाद ! प्रिय आनंद जी . आभार .ब्लॉग पर देखना सुखद लगा .

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  7. सादर धन्यवाद ! आभार .

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  8. नदिया की लहरों से पुलकित
    साँझ ढले तुम आए
    लगा कि मौसम ने खुशबू के
    छंद नए गाए
    बहुत सुन्दर
    latest post गुरु वन्दना (रुबाइयाँ)

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  9. सादर धन्यवाद ! आभार .

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  10. सादर प्रणाम |
    बहुत ही खूबसूरत भावाभिव्यक्ति |
    पढ़कर मन खुश हों गया |
    आभार |
    “अजेय-असीम”

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    1. सादर धन्यवाद ! अजय जी. आभार .

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  11. साँझ ढले तुम आए
    लगा कि मौसम ने खुशबू के
    छंद नए गाए.
    ...........बहुत ही बढ़िया

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    1. सादर धन्यवाद ! संजय जी. आभार .

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