इन
प्रणय के कोरे कागज पर
कुछ
शब्द ढले नयनों से
आहत
मोती के मनकों को
चुग
डालो प्रिय अंखियों से
कितने चित्र रचे थे मैंने
खुली हथेली पर
कितने छंद उकेरे तुमने
नेह पहेली पर
अवगुंठन
खुला लाज का
बांच
गए पोथी मन मितवा
जीत
गई पिछली मनुहारें
खिले
फूल मोती के बिरवा
भोर गुलाबी सप्त किरण से
मन पर तुम छाए
जैसे हवा व्यतीत क्षणों को
बीन – बीन लाए
बरसों
बाद लगा है जैसे
सोंधी
गंध बसी हों मन में
मीलों
लम्बे सफ़र लांघकर
उमर हँसी हों मन दर्पण में
नदिया की लहरों से पुलकित
साँझ ढले तुम आए
लगा कि मौसम ने खुशबू के
छंद नए गाए.
मीलों लम्बे सफ़र लांघकर
ReplyDeleteउमर हँसी हों मन दर्पण में
***
ये हंसी बनी रहे!
सादर!
सादर धन्यवाद ! अनुपमा जी . आभार .
Deleteअच्छे, मनमोहक शब्द हैं... बहुत खूब।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! शाहनवाज जी . आभार .
Deleteसुन्दर रचना...
ReplyDelete:-)
सादर धन्यवाद ! रीना जी . आभार .
Deleteबहुत सुन्दर .
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! रंजना जी . आभार .
Deleteआदरणीय राजीव सर, सादर प्रणाम
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और धारदार सर.......
सादर धन्यवाद ! प्रिय आनंद जी . आभार .ब्लॉग पर देखना सुखद लगा .
Deleteसादर धन्यवाद ! आभार .
ReplyDeleteAti Sunder, Rajiv Ji.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteनदिया की लहरों से पुलकित
ReplyDeleteसाँझ ढले तुम आए
लगा कि मौसम ने खुशबू के
छंद नए गाए
बहुत सुन्दर
latest post गुरु वन्दना (रुबाइयाँ)
सादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteसादर धन्यवाद ! आभार .
ReplyDeleteसादर प्रणाम |
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत भावाभिव्यक्ति |
पढ़कर मन खुश हों गया |
आभार |
“अजेय-असीम”
सादर धन्यवाद ! अजय जी. आभार .
Deleteसाँझ ढले तुम आए
ReplyDeleteलगा कि मौसम ने खुशबू के
छंद नए गाए.
...........बहुत ही बढ़िया
सादर धन्यवाद ! संजय जी. आभार .
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