कैसे-कैसे रंग दिखाती है
जिंदगी
कभी हंसाती कभी रुलाती है
जिंदगी
सफ़र ये कैसा है रूह भी थकने
लगी
मील के पत्थरों से टिककर
हांफती है जिंदगी
नींद के आगोश में कोई जाए
कब तक
एक आहट से सहमकर जागती है
जिंदगी
दुश्वारियों के बियाबां में
घिरने लगे
बंद दरवाजों से सहमकर
झांकती है जिंदगी
कच्ची नींद में ज्यों ख्वाब
सताने लगे
किस बहाने आँखों में झांकती
है जिंदगी
उसकी चाल से चाल न मिला
पाया कभी
‘राजीव’ रेस के घोड़े सी
भागती है जिंदगी |
Saturday, 31 January 2015
रंग दिखाती है जिंदगी
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bahut badhiyan :)
ReplyDeleteसुन्दर रचना। सादर।।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ :- समर्पित योद्धा कवि का अवसान - डॉ. रवींद्र चतुर्वेदी (पंडित माखनलाल चतुर्वेदी जी की पुण्यतिथि पर विशेष)
गीत - जयशंकर प्रसाद (125वीं जयन्ती पर विशेष)
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (01-02-2015) को "जिन्दगी की जंग में" (चर्चा-1876) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार ! आ. शास्त्री जी.
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत उम्दा , जीवन हर रंग लिये है
ReplyDeleteउसकी चाल से चाल न मिला पाया कभी
ReplyDelete‘राजीव’ रेस के घोड़े सी भागती है जिंदगी ...
सच कहा अहि ... कई बार मुश्किल हो जाता है कदम ताल करना जिंदगी के साथ ... सभी शेर लाजवाब ...
कैसे-कैसे रंग दिखाती है जिंदगी
ReplyDeleteकभी हंसाती कभी रुलाती है जिंदगी
यहीं हैं जिंदगी........
http://savanxxx.blogspot.in
ये जिंदगी..वो जिंदगी...कई रंग है जिंदगी के.;बहुत सुंदर लिखा
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeletekhubsurat rang jindgi ke..
ReplyDeleteघोड़े सी भागती है जिंदगी, बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सार्थक रचना
ReplyDeleteगोस्वामी तुलसीदास
बहुरंगी,बहुरूपी जिंदगी ..बहुत सुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteजिन्दगी क्या-क्या रंग दिखाती है कितना सत्य लिखा है आपने ,बहुत बढियाँ
ReplyDeleteकभी गुलजार तो कभी बेजार लगती है ये जिंदगी !
ReplyDeleteबहुत सार्थक रचना है !
दुश्वारियों के बियाबां में घिरने लगे
ReplyDeleteबंद दरवाजों से सहमकर झांकती है जिंदगी
कच्ची नींद में ज्यों ख्वाब सताने लगे
किस बहाने आँखों में झांकती है जिंदगी
खूबसूरत अलफ़ाज़ श्री राजीव जी
जिंदगी का सफर है ही ऐसा। कभी हमें रूलाता है, तो कभी हंसाता। कभी दर्द दे जाता है, तो कभी ख्ुाशियों से झोली भर जाता है। लाजवाब कविता। मुझे बहुत अच्छी लगी। टिप्पणी करने के लिए धन्यवाद। मेरी भी नई पोस्ट आपका इंतजार कर रही हैं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और भावमय अभिव्यक्ति...
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