इन्द्रधनुषी रंगों में रंगे
तेरे रूप अनेक
ताल,छंद,सुर हैं विविध
किंतु राग हैं एक
क्षितिज छोर तक उड़ रहा
सुरभित रम्य दुकूल
भाव भंगिमा में सदा
खिलते मधुमय फूल
हरपल रहा तुम्हारा चिंतन
कैसा मन का यह हाल
मोहपाश यह,प्रिये ! कौन सा
तुमने दिया ह्रदय पर डाल
भ्रमित हो रहा मन
चकित हुए हैं आज नयन
एक रूप बिंब अनेकों
महक रही है गुलशन-गुलशन
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मन की बात...सलीके से अभिव्यक्त।
ReplyDeleteइस लेखनी को नमन।
सुंदर भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteसुंदर वर्णन भावनाओं का प्रिय के लिये
ReplyDeleteबढ़िया रचना
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30 - 04 - 2015 को चर्चा मंच चर्चा - 1961 { मौसम ने करवट बदली } में पर दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
सादर आभार.
Deleteवाह ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ! सार्थक सृजन !
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteसुन्दर रचना !
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
बहुत ही सुन्दर शब्द और उसके साथ भावनाओं का सुंदर तालमेल।
ReplyDeleteप्रेम जब आँखों में उतर आता है ... भ्रम ही भ्रम हो जाता है ...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति ...
बहुत ही अच्छी रचना। बधाई।
ReplyDeleteSir, can you explain the meaning of सुरभित रम्य दुकूल....
ReplyDeleteसुनयना जी ,सादर.
Deleteसुरभित का अर्थ - सुवासित या सुगंधित,रम्य का अर्थ - सुंदर,दुकूल का अर्थ - रेशमी कपड़ा या चिकना और बारीक कपड़ा.
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteआह,प्रेम में स्वप्न देखते देखते मन का भ्रमित हो जाना।
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