Saturday 4 April 2015

मनुहार वाले दिन



भर गए आकाश
भूरे बादलों से
रात आलोकित हुई
अब बिजलियों से
खिड़कियों से आ रही
चंचल हवाएं
यादों के गलियारों से
झांकते
मनुहार वाले दिन

ओस में भींगे  
क्यारियों में पुष्प
भ्रमरों को नए
संवाद देता
बूंद से बोझिल
सलोनी पत्तियां भी
हैं बजाती जा रही अब
पायलें रुनझुन
आ गए अब
मनुहार वाले दिन

डालियों पर
गूंजती हैं कोयलों के
अनवरत से स्वर
बादलों की ओट में
छुप रही चांदनी
मंद गति से
आ रही छनछन
आ गए अब
मनुहार वाले दिन
    

24 comments:

  1. आ गये अब मनुहार वाले दिन...

    वाह...

    बहुत खूब....!!

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  2. बादलों की ओट में
    छुप रही चांदनी
    मंद गति से
    आ रही छनछन
    आ गए अब
    मनुहार वाले दिन
    ..बहुत बढ़िया

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  3. ओस में भीगे ………

    मनुहार वाले दिन।

    भाव और भाषा की रुनझुन ,

    सुन सुन गुन गुन

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  4. डालियों पर
    गूंजती हैं कोयलों के
    अनवरत से स्वर
    बादलों की ओट में
    छुप रही चांदनी
    मंद गति से
    आ रही छनछन
    आ गए अब
    मनुहार वाले दिन
    vaah bahut sundar manuhar vaale din !

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  5. कोयल के गीत और चांदनी का आभास ... मनुहार वाले दिन तो स्वत: ही आ जाते हैं ...
    बहुत खूब ...

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  6. बहुत सुन्दर रचना

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  7. बहुत बढियाँ रचना

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  8. ये दिन उतने ही प्यारे हैं जितनी ये कविता।

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  9. सुन्दर प्रस्तुति...

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  10. शानदार रचना....

    बारिशो को बोछारो से सूंदर चंचल..

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  11. बहुत ख़ूब ....खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  12. वा वाह …
    बड़े आनंद दायक दिन …
    मंगलकामनाएं आपको

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  13. सुप्रभात, इस सुंदर प्रस्तुति के लिए आप धन्यवाद के पात्र हैं।

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  14. gaanv me beeta bachpan yaad aa gaya...is bachpan wali muskurahat ke liye dhanyawaad aapko :-)

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  15. मनुहार वाले दिन बहुत ही बेहतरीन रचना। मुझे बहुत पसंद आई।

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  16. बेहतरिन रचना

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  17. आ गए अब
    मनुहार वाले दिन....बहुत...खूबसूरत

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  18. वाह क्या बात ह

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