क्या बोले मन
दिल का दर्द उभरकर
पलकों पर घिर आया
क्यूं बोले मन
बीती रात न जाने कितनी
कलियां फूल बनी मुस्काई
गिरी जहाँ पर बूंद ओस की
किरणों की झलकी अरुणाई
स्मृति के पन्नों में अंकित
विगत के सुमधुर क्षण
व्याकुल ह्रदय के भीतर
जैसे सूर्यास्त से विरही
क्षण
न कोई जंजीर
जो बांध सके मन को
पल में विचरे धरती पर
पल में जाए नील गगन को |
न कोई जंजीर
ReplyDeleteजो बांध सके मन को
पल में विचरे धरती पर
पल में जाए नील गगन को
..बहुत सही ....मन की गति सबसे तेज ..
मेरो मन अनंत कहाँ सुख पावै
जैसे उडी जहाज को पंछी पुनि जहाँ पर आवै ...
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteसादर आभार.
ReplyDeleteसुंदर कविता
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता। बहुत ही अच्छी लगी पढ़कर।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियाँ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteवाह ! खूबसूरत रचना...
ReplyDeleteबीती रात न जाने कितनी
ReplyDeleteकलियां फूल बनी मुस्काई
गिरी जहाँ पर बूंद ओस की
किरणों की झलकी अरुणाई
खूबसूरत शब्द ! खूबसूरत अंदाज़
बहुत सुंदर रचना ।
ReplyDelete