Wednesday, 9 December 2015

मैं भी कुछ कहता हूँ



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मैं भी कुछ कहता हूँ
कुछ तू भी कहता जा
सारे जहाँ की फ़िक्र न कर
अपनी फ़िक्र करता जा

वक्त बड़ा नाजुक है
इंसां का कोई मोल नहीं
अपनी तक़दीर खुद ही लिख ले
खुद का सिकंदर बनता जा

मेरे सब्र का इम्तिहान न ले
न तू हद से गुजर जा
देख परिंदे भी घर लौट आए
तू भी घर लौट जा 

  
  

17 comments:

  1. अपनी तक़दीर खुद ही लिख ले
    खुद का सिकंदर बनता जा - wonderful!

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  2. सुंदर कविता!

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  3. manushya ko apne faisle khud hi lene hain, sundar rachna

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  4. बहुत खूब। सही कहा वक्‍त बहुत नाजुक है, इंसा का कोई मोल नहीं।

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  5. beautiful. you expressed the truth in a fascinating way

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  6. बातें क्या करेंगे बात से तो भरता नहीं है पेट,
    आसमान को छू गए हैं दाल सब्जियों के रेट
    पक्षियों को खुला आकाश और अपने नियम है
    मुझे तो देर तक अभी ओवर टाइम लगाना है ।

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  7. बातें क्या करेंगे बात से तो भरता नहीं है पेट,
    आसमान को छू गए हैं दाल सब्जियों के रेट
    पक्षियों को खुला आकाश और अपने नियम है
    मुझे तो देर तक अभी ओवर टाइम लगाना है ।

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  8. बातें क्या करेंगे बात से तो भरता नहीं है पेट,
    आसमान को छू गए हैं दाल सब्जियों के रेट
    पक्षियों को खुला आकाश और अपने नियम है
    मुझे तो देर तक अभी ओवर टाइम लगाना है ।

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  9. सुन्दर प्रस्तुति!

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  10. Very nice poem, i liked this

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  11. बहुत सुन्दर रचना...

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  12. वक्त बड़ा नाजुक है
    इंसां का कोई मोल नहीं
    अपनी तक़दीर खुद ही लिख ले
    खुद का सिकंदर बनता जा

    सुंदर भाव राजीव जी !

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  13. बहुत ख़ूब प्रस्तुति!

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  14. बहुत सुन्दर कविता!

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