क्या-क्या न बयां कर जाते
हैं तुम्हारे ख़त
कभी हँसा कभी रुला जाते हैं
तुम्हारे ख़त
मौशिकी का ये अंदाज कोई
तुमसे सीखे
कौन सी संगीत सुना जाते हैं
तुम्हारे ख़त
खतो-किताबत का रिवायत तुमसे
ही सीखा
मजलूम को मकसूस कराते हैं
तुम्हारे ख़त
तनहा रातों में सुलग उठता
है सीने में
दर्दे दिल की दवा बन जाते
हैं तुम्हारे ख़त
‘राजीव’ तुम बिन कट न पाए तनहा
सफ़र
बियाबां में ओस की बूंद दिखा
जाते हैं तुम्हारे ख़त |
वाह ! अनुपम अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteBehtreen Panktiyan
ReplyDeleteबियाबां में ओस की बूंद दिखा जाते हैं तुम्हारे ख़त...kyaa khoob likha hai Rajeev sahab!
ReplyDeleteराजीव जी, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुंदर !
ReplyDeleteखतो-किताबत का रिवायत तुमसे ही सीखा
ReplyDeleteमजलूम को मकसूस कराते हैं तुम्हारे ख़त
तनहा रातों में सुलग उठता है सीने में
दर्दे दिल की दवा बन जाते हैं तुम्हारे ख़त
सुन्दर अल्फ़ाज़ों से सजी शानदार अभिव्यक्ति राजीव जी !!
बहुत सुन्दर
ReplyDeletekhat beshak aaj kal na likhe jate hon par unki yaad aaj bhi vyakti ko shayarana kar deti hai, sunder rachna
ReplyDeleteसादर आभार !
ReplyDeleteक्या-क्या न बयां कर जाते हैं तुम्हारे ख़त
ReplyDeleteकभी हँसा कभी रुला जाते हैं तुम्हारे ख़त
...बहुत खूब!
जाने कितनी ही यादों का भंवर जाल होते हैं खत ...
अब तो ख़त लिखने का दौर मानों खत्म ही हो गया है। आधुनिक तौर तरीकों में वह भावनाएं नहीं उमड़तीं जो कागज के लिफाफे को देखकर उमड़ा करती थीं। पर आज भी अपने अज़ीज़ों के वह पुराने ख़त लोग संभाल कर रखते है, उनमें यादें जो घर बनाकर रह रही हैं।
ReplyDeleteWaah!
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबेहद प्रभावशाली रचना......बहुत बहुत बधाई.....
ReplyDeleteख़त के नाम से ही दिल धड़कने लगता है सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeleteचाहे कितनी भी ए बी सी डी ई मेलें ईजाद हो गयी हों
ReplyDeleteखतों के जैसा वह इंतजार, भावनाएं कहाँ रह गयीं हैं। गोया कि हर तरह की सुगंध जरूर उपलब्ध है पर फूलों समेत सुवास कहाँ रह गयी है !
बहुत खूब ... ये ख़त भी गजाब की शै होते हैं ...
ReplyDeleteपर आज नेट के जमाने ने इसको अहमियत और प्रेम के मायने बदल दिए हैं ...
लाजवाब शेर ...