Friday 3 June 2016

हजारों गम हैं




एक नहीं हजारों गम हैं किस किसको कहेंगे
पहले भी हजारों सहे हैं इस बार भी सहेंगे

जमाने के साथ कदम मिलाकर न चल पाए
दोष खुद का हो तो औरों को क्या कहेंगे

हथेली से रेत की मानिंद फिसलती जाए है
जिंदगी क्या इस तरह गुजर न जाएंगे  

तुम नहीं हम अकेले और बहती दरिया है
सुनसान गीतों के छंद किनारे पहुँच पाएंगे

‘राजीव’ फ़कत चुपचाप हैं पेड़ पत्ते बोलते हैं
दर्दे दिल की शमा आँधियों से न बुझ जाएंगे 
    

16 comments:

  1. काफी दिनों के बाद आपकी पोस्ट पढ़ने को मिली। आभार और बधाई

    ReplyDelete
  2. काफी दिनों के बाद आपकी पोस्ट पढ़ने को मिली। आभार और बधाई

    ReplyDelete
  3. अपना गम खुद ही गफलत करना होता है
    बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  4. बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
  5. अकेलेपन से ही छंदों का निर्माण होता है ... खूबसूरत हैं सभी शेर ...

    ReplyDelete
  6. सार्थक व प्रशंसनीय रचना...
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।

    ReplyDelete
  7. प्रशंंसा के योग्‍य रचना की प्रस्‍तुति। प्रथम 2 पंक्तियां ही ''एक नहीं हजारों गम हैं किस किसको कहेंगे..,पहले भी हजारों सहे हैं इस बार भी सहेंगे'' पूरी रचना का मर्म समेटे हुए है। बेहद सुंदर रचना।

    ReplyDelete
  8. 'एक नहीं हजारों गम हैं किस किसको कहेंगे..,पहले भी हजारों सहे हैं इस बार भी सहेंगे'bahut khoob likha hai aadarneey

    ReplyDelete
  9. 'कुछ अलग सा' पर आपका सदा स्वागत है

    ReplyDelete
  10. काफी दिनों के बाद आना हुआ आपके ब्लॉग पर
    नई पोस्ट ….शब्दों की मुस्कराहट पर आपका स्वागत है

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...