एक नहीं हजारों गम हैं किस
किसको कहेंगे
पहले भी हजारों सहे हैं इस
बार भी सहेंगे
जमाने के साथ कदम मिलाकर न
चल पाए
दोष खुद का हो तो औरों को
क्या कहेंगे
हथेली से रेत की मानिंद
फिसलती जाए है
जिंदगी क्या इस तरह गुजर न जाएंगे
तुम नहीं हम अकेले और बहती
दरिया है
सुनसान गीतों के छंद किनारे
पहुँच पाएंगे
‘राजीव’ फ़कत चुपचाप हैं पेड़
पत्ते बोलते हैं
दर्दे दिल की शमा आँधियों
से न बुझ जाएंगे |
Bahut badhiya
ReplyDeleteकाफी दिनों के बाद आपकी पोस्ट पढ़ने को मिली। आभार और बधाई
ReplyDeleteकाफी दिनों के बाद आपकी पोस्ट पढ़ने को मिली। आभार और बधाई
ReplyDeletebahut khoob!
ReplyDeleteअपना गम खुद ही गफलत करना होता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeletebadiya gazal ...
ReplyDeleteअकेलेपन से ही छंदों का निर्माण होता है ... खूबसूरत हैं सभी शेर ...
ReplyDeleteसार्थक व प्रशंसनीय रचना...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।
प्रशंंसा के योग्य रचना की प्रस्तुति। प्रथम 2 पंक्तियां ही ''एक नहीं हजारों गम हैं किस किसको कहेंगे..,पहले भी हजारों सहे हैं इस बार भी सहेंगे'' पूरी रचना का मर्म समेटे हुए है। बेहद सुंदर रचना।
ReplyDelete'एक नहीं हजारों गम हैं किस किसको कहेंगे..,पहले भी हजारों सहे हैं इस बार भी सहेंगे'bahut khoob likha hai aadarneey
ReplyDelete'कुछ अलग सा' पर आपका सदा स्वागत है
ReplyDeleteकाफी दिनों के बाद आना हुआ आपके ब्लॉग पर
ReplyDeleteनई पोस्ट ….शब्दों की मुस्कराहट पर आपका स्वागत है
PKMKB Mean in Hindi
ReplyDeletePKMKB Mean in Hindi
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