Saturday, 10 January 2015

तेरी आँखें


                                                 
                      इक महका ख्वाब है तेरी आखें               मेरे ख़त का जबाब है तेरी आँखें
पलकें करें सजदा चाहत बनकर
अदब का आदाब है तेरी आँखें

जुबां का मेरे समझ लेती हैं पैगाम
मेरे दिल की किताब हैं तेरी आँखें
रफ्ता-रफ्ता आगाज शबे महफ़िल का
शोख माहताब हैं तेरी आँखें

कितने ही मयकश हुए दीवाने
गुस्ताखियों से आबाद हैं तेरी आँखें
थरथराने लगी लौ शम्मा की
दो जलते चिराग हैं तेरी आँखें

चाँद भी छूप गया बादलों की ओट
सूरज सी आफ़ताब हैं तेरी आँखें
झुकी-झुकी नजरों में समायी हया
‘राजीव’ अनुराग हैं तेरी आँखें 

16 comments:

  1. बहुत सुन्दर ग़ज़ल, मजा आ गया।
    मेरी सोच मेरी मंजिल

    ReplyDelete
  2. सुन्दर ग़ज़ल

    ReplyDelete
  3. सादर धन्यवाद ! आ. शास्त्री जी. आभार.

    ReplyDelete
  4. गीत वही जो दिल से निकले और दिल की बात करे। बेहतरीन गीत।

    ReplyDelete
  5. तेरी आँखों के सिवा दुनिया मिएँ रक्खा क्या है ...
    बहुत लाजवाब गीत ...

    ReplyDelete
  6. बहुत ही सुन्दर...
    बेहतरीन....
    :-)

    ReplyDelete
  7. वाह ! बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत बढ़िया !

    ReplyDelete
  8. सुंदर प्रस्तुति.

    ReplyDelete
  9. वाह... खुबसूरत गज़ल कही सर बधाई सर

    ReplyDelete
  10. खूबसूरत अभिव्यक्ति....

    ReplyDelete
  11. aapke iss khoobsurat gazal ne unki aankho ko aur khoobsurat bana diya hai....behtareen prastuti..

    ReplyDelete
  12. सुन्दर गजल ,बेतरीन अभिव्यक्ति

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...