इक महका ख्वाब है तेरी आखें मेरे ख़त का जबाब है तेरी आँखें
पलकें करें सजदा चाहत बनकर
अदब का आदाब है तेरी आँखें
जुबां का मेरे समझ लेती हैं
पैगाम
मेरे दिल की किताब हैं तेरी
आँखें
रफ्ता-रफ्ता आगाज शबे महफ़िल
का
शोख माहताब हैं तेरी आँखें
कितने ही मयकश हुए दीवाने
गुस्ताखियों से आबाद हैं
तेरी आँखें
थरथराने लगी लौ शम्मा की
दो जलते चिराग हैं तेरी
आँखें
चाँद भी छूप गया बादलों की
ओट
सूरज सी आफ़ताब हैं तेरी
आँखें
झुकी-झुकी नजरों में समायी
हया
‘राजीव’ अनुराग हैं तेरी
आँखें
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Saturday, 10 January 2015
तेरी आँखें
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Bahut hi sundar rachna :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल, मजा आ गया।
ReplyDeleteमेरी सोच मेरी मंजिल
सुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeletewaah bahut sundar rachna
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आ. शास्त्री जी. आभार.
ReplyDeleteBahut umda gazal
ReplyDeleteगीत वही जो दिल से निकले और दिल की बात करे। बेहतरीन गीत।
ReplyDeleteतेरी आँखों के सिवा दुनिया मिएँ रक्खा क्या है ...
ReplyDeleteबहुत लाजवाब गीत ...
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर...
ReplyDeleteबेहतरीन....
:-)
वाह ! बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत बढ़िया !
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteवाह... खुबसूरत गज़ल कही सर बधाई सर
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteaapke iss khoobsurat gazal ne unki aankho ko aur khoobsurat bana diya hai....behtareen prastuti..
ReplyDeleteसुन्दर गजल ,बेतरीन अभिव्यक्ति
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