फिर से खिले टेसू
फिर से महकी
मन की गलियां
प्यार की गंध लिए
आँचल में
सजा बंदनवार
मन का अनुराग सभी
दृष्टि में निचुड़ गया
सतरंगी सपनों का
सागर उमड़ गया
बिखर गई अंतस तक
केसरिया चांदनी
नीलकंवल छवि हुई
हंसी के संतूर बजे
शब्द-शब्द झरे जैसे
मदिरा मधुर अंगूर उगे
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Bhot hai pyari pantiyan hai :)
ReplyDeleteबहुत खूब ... टेसू के फूल की मादक महक मन में उतर जाती है ...
ReplyDeleteबहुत खूब ...
Bahut khoob . Mohak.
ReplyDeletevaah ...
ReplyDeleteBahut Umda
ReplyDeleteनीलकंवल छवि हुई
ReplyDeleteहंसी के संतूर बजे
शब्द-शब्द झरे जैसे
मदिरा मधुर अंगूर उगे
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है राजीव भाई,
आपके लेख जितने सुन्दर होते है कवितायें भी उतनी ही सुन्दर
होती है !
खूबसूरत रचना !
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
सुन्दर रचना साभार! आदरणीय राजीव जी!
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति....
ReplyDeleteअति सुन्दर भाव ......
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in
नीलकंवल छवि हुई
ReplyDeleteहंसी के संतूर बजे
शब्द-शब्द झरे जैसे
मदिरा मधुर अंगूर उगे
वाह बहुत सुंदर भावों से सजी रचना।