क्यों लोग गिला करते हैं
कदम तपती राहों पर कब थमते
हैं
फूल प्यार के खिजां में
खिला करते हैं
तनहाइयों से डर क्यूँ जाते हो
आँखों के कटोरों को नम क्यों कर जाते हो
फासले जमीं-आसमां के कब
मिटा करते हैं
दर्दे दिल यूँ ही बढ़ा करते हैं
तस्वीर तेरी आँखों से न हट
पाती है
जिंदगी तुम बिन न कट पाती
है
रंजिशों में उम्र बिता करते हैं
'राजीव' जख्म दिल के अश्कों से सिला करते हैं |
Wonderful lines
ReplyDeleteThanks ! Ravish ji.
DeleteBeautiful Poem!
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति.... मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं!!
ReplyDelete..प्यार से प्यार बढ़ता है ... फिर लोगों की क्या परवाह करना..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
प्यारी रचना ............
ReplyDeleteबहुत खूब ... जख्म तो अश्क सिल ही देंगे ... पर प्रेम में जख्म का डर कैसा ...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! राजेन्द्र जी. आभार.
ReplyDeleteवाह ! बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ! हर शब्द भावपूर्ण हर भाव मर्मस्पर्शी !
ReplyDeleteवाह सुंदर भावाभिव्यक्ति.... मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं!!
ReplyDeleteखूबसूरत
ReplyDeleteसुंदर रचना !
ReplyDeleteमेरी सोच मेरी मंजिल
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteमकरसंक्रान्ति की शुभकामनायें
बहुत ख़ूबसूरत रचना...
ReplyDeleteसो स्वीट राजीव भाई!!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeletewah bahut khoob
ReplyDelete