नई सुबह
आई है चुपके से
अंधियारा छट गया
आगोश में भर लें
स्वागत करें
नई सुबह का !
फेफड़ों में भर लें
ताज़ी हवा
नई सुबह की
रेत पर चलें
नंगे पांव
छोड़ें क़दमों के निशां
नई सुबह
आई है चुपके से !
पत्तों के कोरों पर
बिछी है मोती
सुबह के ओस की
अंजुरी में भर लें
समेट लें मनके
थोड़ी खुशियां
मन में भर लें
नई सुबह
आई है चुपके से !
मंदिर के चौखट तक
चले जाते हैं कदम
हौले-हौले बजती हैं घंटियां
लोबान के धुएं में
छा जाती है मदहोशी
हो जाता है हल्का मन
नई सुबह आई है चुपके से !
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Sunday, 18 October 2015
नई सुबह आई है चुपके से
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बढ़िया ।
ReplyDeleteमंदिर के चौखट तक
ReplyDeleteचले जाते हैं कदम
हौले-हौले बजती हैं घंटियां
लोबान के धुएं में
छा जाती है मदहोशी
हो जाता है हल्का मन
नई सुबह आई है चुपके से !
............बहुत सुंदर
मन को प्रफुल्लित करती बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर आभार !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है नई सुबह नया दिन नयी उमंग
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, कॉर्प्रॉट सोशल रिस्पोंसबिलिटी या सीएसआर कितना कारगर , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeletesundar aur manmohak kavita.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत ही मनमोहक रचना।
ReplyDeleteनयी सुबह ऐसे ही आती रहे और ताज़ी हवा के झोंके बिखराती रहे.
ReplyDeleteसुंदर कविता ताजगी भरती.
Manmohak subah!
ReplyDeleteमनमोहक रचना।
ReplyDeleteRecent Post शब्दों की मुस्कराहट पर मांझी: द माउंटेन मैन :)
Bahut sunder subah sakar Kar dee. Bahut abhar.
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