Sunday, 18 October 2015

नई सुबह आई है चुपके से

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नई सुबह
आई है चुपके से
अंधियारा छट गया
आगोश में भर लें
स्वागत करें
नई सुबह का !

फेफड़ों में भर लें
ताज़ी हवा
नई सुबह की
रेत पर चलें
नंगे पांव
छोड़ें क़दमों के निशां
नई सुबह
आई है चुपके से !

पत्तों के कोरों पर
बिछी है मोती
सुबह के ओस की
अंजुरी में भर लें
समेट लें मनके
थोड़ी खुशियां
मन में भर लें
नई सुबह
आई है चुपके से !

मंदिर के चौखट तक
चले जाते हैं कदम
हौले-हौले बजती हैं घंटियां
लोबान के धुएं में
छा जाती है मदहोशी
हो जाता है हल्का मन
नई सुबह आई है चुपके से !


    

14 comments:

  1. मंदिर के चौखट तक
    चले जाते हैं कदम
    हौले-हौले बजती हैं घंटियां
    लोबान के धुएं में
    छा जाती है मदहोशी
    हो जाता है हल्का मन
    नई सुबह आई है चुपके से !

    ............बहुत सुंदर

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  2. मन को प्रफुल्लित करती बहुत सुन्दर रचना...

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  4. बहुत सुन्दर कविता है नई सुबह नया दिन नयी उमंग

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  5. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, कॉर्प्रॉट सोशल रिस्पोंसबिलिटी या सीएसआर कितना कारगर , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  6. सुन्दर प्रस्तुति.

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  7. बहुत ही मनमोहक रचना।

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  8. नयी सुबह ऐसे ही आती रहे और ताज़ी हवा के झोंके बिखराती रहे.

    सुंदर कविता ताजगी भरती.

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  9. मनमोहक रचना।
    Recent Post शब्दों की मुस्कराहट पर मांझी: द माउंटेन मैन :)

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  10. Bahut sunder subah sakar Kar dee. Bahut abhar.

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