Tuesday, 27 October 2015

गजरे में बांध लिया मन



गजरे में बांध लिया
प्रिय तुमने मेरा मन
नजरें झुकी-झुकी
लगती क्यों अलसाई
ज्यों फूलों पर छा जाती
सूरज की अरुणाई

लहराते केश ज्यों
रूई की फाहें
तुमसे मिलने को
अनगिनत हैं राहें
मन तो रीता है
तुम संग जीता है
मोहपाश यह कौन सा
सुधबुध खोता तनमन 

गजरे में बांध लिया
   प्रिय तुमने मेरा मन    

Thursday, 22 October 2015

बीते न रैन

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मीठी धूप खिली
महकी फिर शाम
पागल हवा देती
तुम्हारा पैगाम !

महक रही जूही
चहक रही चंपा
थिरक रहा अंगना
बज रहा कंगना !

रात है अंधेरी
छाये काले बादल
फिर याद तुम्हारी
कर देती पागल !

कुछ कहते नैन
अब नहीं चैन
मिल जाएं गले
बीते न रैन !
    

Sunday, 18 October 2015

नई सुबह आई है चुपके से

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नई सुबह
आई है चुपके से
अंधियारा छट गया
आगोश में भर लें
स्वागत करें
नई सुबह का !

फेफड़ों में भर लें
ताज़ी हवा
नई सुबह की
रेत पर चलें
नंगे पांव
छोड़ें क़दमों के निशां
नई सुबह
आई है चुपके से !

पत्तों के कोरों पर
बिछी है मोती
सुबह के ओस की
अंजुरी में भर लें
समेट लें मनके
थोड़ी खुशियां
मन में भर लें
नई सुबह
आई है चुपके से !

मंदिर के चौखट तक
चले जाते हैं कदम
हौले-हौले बजती हैं घंटियां
लोबान के धुएं में
छा जाती है मदहोशी
हो जाता है हल्का मन
नई सुबह आई है चुपके से !


    

Saturday, 10 October 2015

मर्सिया गाने लगे हैं

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 मरघट से मुरदे चिल्लाने लगे हैं
लौट कर बस्तियों में आने लगे हैं

इंसान  बन गया है हैवान
मुर्दों में भी जान आने लगे हैं

जानवरों पर होने लगी सियासत
इंसानों से भय खाने लगे हैं

 रंगो खून का अलहदा तो नहीं
नासमझ कत्लेआम मचाने लगे हैं 

‘राजीव’ जमाने की उलटबांसी न समझे 
मुरदे भी मर्सिया गाने लगे हैं
                                                                                                              

Tuesday, 6 October 2015

दिल मचल गया होता

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फिर कहीं दिल मचल गया होता
वक्त तक होश में जो रहा होता

इक आग सुलग उठती सीने में
रफ्ता-रफ्ता जो हवा दिया होता

इस उम्र का तकाजा भी क्या कहिए
दिल के हाथों मजबूर न हुआ होता

ये तो अच्छा हुआ लोग सामने न थे
वरना भीड़ से पत्थर उछल गया होता

दर्दे दिल की दवा क्या करिए ‘राजीव’
दिल अपने वश में जो रहा होता

  
    
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