गर तुमसे यूँ नहीं मिला
होता
कोई खटका दिल में नहीं हुआ
होता
तुम्हें भुलाने की लाख कोशिश की मैंने
गर मेरे दिल में नश्तर नहीं
चुभोया होता
दोस्ती-दुश्मनी में फर्क मिटा दिया तुमने
गर अहदे वफ़ा का सिला नहीं
दिया होता
रास्ते का पत्थर जो समझ लिया तुमने
गर ठोकर में न उड़ा दिया
होता
हर किसी पे एतबार नहीं करना ‘राजीव’ |
Thursday, 27 August 2015
यूँ नहीं मिला होता
Friday, 14 August 2015
Saturday, 9 May 2015
Wednesday, 29 April 2015
तेरे रूप अनेक
Saturday, 11 April 2015
उन्मुक्त परिंदे
कल की चिंता से मुक्त
आज के सुख में डूबे
परिंदों को नहीं परवाह
जिंदगी की कड़वाह्टों की
सूखे पत्तों को
हांक रही मंद हवा
मोहपाश में जकड़ी हुई
हलकी और भारहीन
रेशम के कपास सी
रेशा,रेशा,महीन
उड़ी जा रही
विस्तृत गगन में
सूखे दरख्तों के
अलसाये पत्ते
पीले,कत्थे,भूरे,मटमैले
रंगबिरंगे बूंदों से
बरस रहे
सिर पर
ज्यों महावर
कुछ ऐसे ही लम्हे
ज्यों यायावर !
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