Tuesday 27 October 2015

गजरे में बांध लिया मन



गजरे में बांध लिया
प्रिय तुमने मेरा मन
नजरें झुकी-झुकी
लगती क्यों अलसाई
ज्यों फूलों पर छा जाती
सूरज की अरुणाई

लहराते केश ज्यों
रूई की फाहें
तुमसे मिलने को
अनगिनत हैं राहें
मन तो रीता है
तुम संग जीता है
मोहपाश यह कौन सा
सुधबुध खोता तनमन 

गजरे में बांध लिया
   प्रिय तुमने मेरा मन    

17 comments:

  1. बहुत सुन्दर..

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  2. गजरे सा महका सुन्दर गीत ....

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  3. बहुत ही सुंदर रचना। मनमोहक।

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  4. Jadu hai, Tera hee jadu hai,
    Kya gajara, kya kajara, man be kaboo hai.

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  5. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29 - 10 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2144 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  6. बेहतरीन प्रस्तुति

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