Saturday 26 December 2015

तुम्हारे ख़त

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क्या-क्या न बयां कर जाते हैं तुम्हारे ख़त
कभी हँसा कभी रुला जाते हैं तुम्हारे ख़त

मौशिकी का ये अंदाज कोई तुमसे सीखे
कौन सी संगीत सुना जाते हैं तुम्हारे ख़त

खतो-किताबत का रिवायत तुमसे ही सीखा
मजलूम को मकसूस कराते हैं तुम्हारे ख़त

तनहा रातों में सुलग उठता है सीने में
दर्दे दिल की दवा बन जाते हैं तुम्हारे ख़त

‘राजीव’ तुम बिन कट न पाए तनहा सफ़र
बियाबां में ओस की बूंद दिखा जाते हैं तुम्हारे ख़त 

    

19 comments:

  1. वाह ! अनुपम अभिव्यक्ति !

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  2. बियाबां में ओस की बूंद दिखा जाते हैं तुम्हारे ख़त...kyaa khoob likha hai Rajeev sahab!

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  3. राजीव जी, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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  4. खतो-किताबत का रिवायत तुमसे ही सीखा
    मजलूम को मकसूस कराते हैं तुम्हारे ख़त

    तनहा रातों में सुलग उठता है सीने में
    दर्दे दिल की दवा बन जाते हैं तुम्हारे ख़त
    सुन्दर अल्फ़ाज़ों से सजी शानदार अभिव्यक्ति राजीव जी !!

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  5. बहुत सुन्दर

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  6. khat beshak aaj kal na likhe jate hon par unki yaad aaj bhi vyakti ko shayarana kar deti hai, sunder rachna

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  7. क्या-क्या न बयां कर जाते हैं तुम्हारे ख़त
    कभी हँसा कभी रुला जाते हैं तुम्हारे ख़त
    ...बहुत खूब!
    जाने कितनी ही यादों का भंवर जाल होते हैं खत ...

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  8. अब तो ख़त लिखने का दौर मानों खत्‍म ही हो गया है। आधुनिक तौर तरीकों में वह भावनाएं नहीं उमड़तीं जो कागज के लिफाफे को देखकर उमड़ा करती थीं। पर आज भी अपने अज़ीज़ों के वह पुराने ख़त लोग संभाल कर रखते है, उनमें यादें जो घर बनाकर रह रही हैं।

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  9. बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  10. बेहद प्रभावशाली रचना......बहुत बहुत बधाई.....

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  11. ख़त के नाम से ही दिल धड़कने लगता है सुन्दर रचना

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  12. चाहे कितनी भी ए बी सी डी ई मेलें ईजाद हो गयी हों
    खतों के जैसा वह इंतजार, भावनाएं कहाँ रह गयीं हैं। गोया कि हर तरह की सुगंध जरूर उपलब्ध है पर फूलों समेत सुवास कहाँ रह गयी है !

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  13. बहुत खूब ... ये ख़त भी गजाब की शै होते हैं ...
    पर आज नेट के जमाने ने इसको अहमियत और प्रेम के मायने बदल दिए हैं ...
    लाजवाब शेर ...

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